Monday, August 13, 2012

एक महापाषाणीय स्थल की अभूतपूर्व पुनर्स्थापना.....





इस ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास मुख्यतः अपनी विरासत के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करना रहा है. ऐसी ही एक विरासत पंखुड़ी बरवाडीह, हजारीबाग; झाड़खंड के ‘स्टोन सर्कल’ भी हैं जिनका जिक्र मैंने अपनी ब्लौगिंग की प्रारंभिक पोस्ट में भी किया था. पुनः जब स्थानीय लोगों ने इसपर अपने प्रेम प्रदर्शन की निशानियाँ छोडीं तब भी ‘ विश्व विरासत दिवस ‘ के बहाने इस घृणित प्रवृत्ति पर भी मैंने चर्चा की.  कोल माइनिंग से संभावित खतरे और स्थानीय जनता तथा प्रशासन की उपेक्षा के बीच फिर भी इसके बरकरार होने की फिर भी कहीं एक मनबह्लाऊ तसल्ली थी, जो भी हाल में टूट सी गई जब इनमें से एक स्टोन (मेन्हीर) के गिर जाने की सुचना मिली. इन दोनों महापाषाणों के मध्य से बनी ‘V’ आकृति से समदिवारात्री  ( Equinox ) के कई दृश्यों को निहारने के संस्मरण मानसपटल पर उभर आये. दूर से ही इस स्थल को देख उभर आने वाला रोमांच अद्भुत था, मगर इस रोमांच का केन्द्र ‘V’ आकृति बनाने वाले मेनहीर में से एक के प्रकृति, प्रशासन और स्थानीय लोगों की अपेक्षाओं के बोझ तले ध्वस्त हो चुका था.  


ऐसे में राहत यह जानकर मिली कि हजारीबाग निवासी मेगालिथ अन्वेषक श्री शुभाशीष दास ने जिन्होंने इस स्थल के खगोलिय पक्षों को उभारने के महत्वपूर्ण प्रयास करते हुए राष्ट्रिय-अन्तराष्ट्रीय कई विशेषज्ञों का ध्यान इस ओर खिंचा था, के द्वारा इसे मूल स्वरुप वापस देने के त्वरित प्रयास शुरू किये गए. इन् महापाषाणों (Megaliths) को अपनी संतान सादृश्य मानने वाले श्री दास के लिए इनका ये स्वरुप देख पाना कितना कठिन रहा होगा इसकी कल्पना भी नाहीं की जा सकती. अपने कई कई वर्षों के सतत अध्ययन के दौरान इन्होने इन् मेगालिथ्स की दिशा, कोनों पर झुकाव जैसे कई तकनिकी देता संकलित कर रखे थे, वो अभी काम आये और संभवतः भारत में पहली बार किसी ध्वस्त महापाषाण को उसका मूल स्वरुप पुनः दे पाने का प्रयास किया गया. एक अमेचर मेगालिथ अन्वेषक के लिए यह कार्य कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा इसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है...


श्री दास के अनुसार इस संरचना को संपूर्ण वास्तविक स्वरुप दे पाना तो असंभव सा ही है, किन्तु इन्हें पूर्व सदृश्य स्वरुप तो दिया ही जा चूका है; और अब इसकी ‘ V ‘ आकृति में से ‘Equinox’ का अवलोकन पुनः संभव है.....


एक मेगालिथ अन्वेषक और एक जागरूक नागरिक के रूप में श्री दास ने अपनी जिम्मेवारी तो निभा दी, मगर क्या अब इन अपाहिज मेगालिथ्स के प्रति प्रशासन और आम जनता से अपनी विरासत के प्रति उनकी जिम्मेदारी निभाने की कोई उम्मीद भी की जानी चाहिए ?????

4 comments:

P.N. Subramanian said...

मेगालिथ की दुर्दशा एवं और श्री दास जी की संवेदनशीलता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी. आपने यह नहीं बताया कि वह स्थल कहाँ है और वहां ऐसे कितने मेन्हिर्स हैं. क्या वे वृत्त बनाते हैं.

Rahul Singh said...

अन्‍वेषण और संरक्षण आवश्‍यक जान पड़ रहा है.

मनोज कुमार said...

अद्भुत जानकारी दी है आपने।
आभार!

प्रतिभा सक्सेना said...

अपनी प्राचीन धरोहरों के प्रति इतना लगाव देख कर मन प्रशंसा से भऱ उटता है, लगता है कि जो रहा-बचा है उसका संरक्षण करनेवाले हैं. जो औरों को भी सचेत कर रहे हैं.
इस जानकारी के लिये आभार !

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