जब मैं BHU में था, बनारस के मेहंदीगंज में कोका-कोला संयंत्र के
सालाना विरोधी आयोजन में मेधा पाटेकर से मुलाकात हुई. उन दिनों मैं उनसे बड़ा
प्रभावित था. मैंने उनसे पुछा कि जब मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से इतनी शिकायतें
हैं तो आप जैसे लोग खुद चुनावों में उतर हमें उनको चुनने का विकल्प क्यों नहीं
देते ? - उनका जवाब यही था कि उनका प्रयास सिर्फ जनजागरूकता का है और परिवर्तन का
निर्णय जनता को ही करना है.
इस देश के अधिसंख्य मतदाता विभिन्न कारणवश विकल्पहीनता की सी ही स्थिति में
पृथक राजनीतिक दलों को समर्थन देने पर विवश हैं. धार्मिक, सामाजिक, जातीय, आर्थिक
किसी भी वजह से किसी भी दल को समर्थन देते
हुए भी बदलाव की एक उम्मीद कहीं-न-कहीं तो सभी के मन में थी.
अन्ना आंदोलन के प्रथम चरण को समर्थन के रूप में इन्ही भावनाओं का उभार दिखा. विभिन्न कारणों से दूसरे चरण को उसी स्तर का समर्थन न मिलता देख इस आकलन पर
पहुंचना सही नहीं होगा कि जनता में विकल्प की चाहत खत्म हो गई है. यदि धर्म,
संप्रदाय, जाति आदि संकुचित भावनाओं के ‘
प्रकटीकरण ‘ के लिए तत्पर किसी समूह को राजनीतिक स्वीकार्यता मिल जा सकती है तब
टीम अन्ना के पास तो ऐसी संकीर्ण मानसिकता से हटकर ही मुद्दे हैं. वैसे भी यह भारत
है जहाँ हर मान्यता और विचारधारा के लिए समुचित स्थान की कभी कोई कमी नहीं रही
है...
हमारा संविधान तो सदा से ही अलगाववादी और नक्सली विचारधारा को भी राजनीतिक
प्रक्रिया में शामिल होने को आमंत्रित करता रहा है, ऐसे में टीम अन्ना के राजनीति
में आने पर इतनी हायतौबा भला कैसी !!!
हाँ, बेहतर होगा कि वो किसी ठोस रणनीति के साथ एक सार्थक विकल्प के रूप में
चुनाव में उतरें. जनता उनका हर कदम एक अलग नजरिये से देख रही है, जो बाकि राजनीतिक
दलों के प्रति दृष्टिकोण से अलग है. इस दबाव का इन्हें एहसास होना चाहिए. बदलाव की
दिशा में एक छोटे कदम का भी अपना महत्व है, मगर इतिहास सफल लोगों को ही स्थान देता
है. तो टीम अन्ना से भी बस एक हंगामा खड़ा करने वाली ही नहीं बल्कि तस्वीर बदलने
वाली कोशिश पर खरे उतरने की भी अपेक्षा यह देश रखेगा.
और गांधीजी की यह उक्ति शायद उन्हें प्रेरित कर सके (यदि वो वाकई प्रेरणा पाना
चाहें) कि – “ पहले वो आपको नजरअंदाज करेंगे, फिर वो आप पर हँसेंगे, इसके बाद वो आप से लड़ेंगे और फिर आपकी जीत होगी.....”
देश को कभी परिवर्तन के दिवास्वप्न दिखलाने वाले आज उसी व्यवस्था का हिस्सा
हैं, और उन्ही की ओर से इस नई कवायद का ज्यादा मुखर विरोध भी हो रहा है. भारतीय
जनता के विश्वास को एक बार फिर से न छले जाने के उम्मीद व आग्रह के साथ एक सार्थक
विकल्प दे पाने की शुभकामनाएं.....
1 comment:
सही कहा आपने कि एक सार्थक विकल्प दें और वह भी ठोस रणनीति के साथ।
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