"सुबह जाना काम पर, शाम को घर आना;
सबसे बुरा है- मुर्दा शांति से भर जाना "
तो अपने जिन्दा होने को कन्फर्म करने और शांत, ठहरे पानी में थोड़ी हलचल
जगाने के लिए कभी-कभी ऐसे अभियानों पर निकल ही जाता हूँ. आज जा पहुंचा
कश्मीर के सोपोर के उस स्थान पर जहाँ Palaeolithic और Neolithic काल के
कुछ अवशेष अभी भी अपने वास्तविक मूल्यांकन की राह तकते खड़े हैं. इस रौक
आर्ट में मानव और पशु आकृतियों के साथ कुछ गोल घेरे भी दिख रहे हैं.
पीर-पंजाल श्रेणी के वोल्केनिक रौक्स में अंकित किये गए इन चित्रों को
आकृति अपनी रचना शैली के कारण पुरातत्वविद Upper Palaeolithic Age के मान
रहे हैं. Concentric गोले संभवतः इस क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रमुख
झीलों का निरूपण हो सकती हैं. एक स्थानीय लोककथा के अनुसार कश्मीर का
स्थल पहले झील में डूबा हुआ था, जिसमें एक राक्षस का राज था. देवताओं ने
उसके वध के लिए एक दर्रे के माध्यम से सारा पानी निकलवा दिया और फिर उस
राक्षस का वध किया गया. कुछ लोग यहाँ की झीलों को meteorite effect से
जोड़ कर देख रहे हैं. तो क्या पुरामानवों ने यहाँ कोई उल्किय घटना देखी थी
और जिसका निरूपण इस भित्ति चित्र पर किया गया है ! कई Archaeoastronomers
इस दिशा में भी विचार कर रहे हैं, मगर इस सन्दर्भ में अभी कई भू-गर्भिक
और भू-भौतिक अध्ययन की आवश्यकता है.
इस स्थल के निकट से ही एक काफी ऊँचा Mound भी मिला है जिसे पुरातात्विक
दृष्टि से Neolithic माना जा रहा है और यहाँ से अब भी कई Black & Red
potteries मिल रहे हैं. इस क्षेत्र में अध्ययन करते रहे पुरातत्वशाश्त्री
डॉ. मुमताज बताते हैं कि 70 के दशक तक इस क्षेत्र में पुरातत्त्व की
दृष्टि से काफी काम हुआ, मगर 80 के बाद से इस दिशा में किये जा रहे
प्रयासों में काफी कमी आई है. निश्चित रूप से प्राकइतिहास के दृष्टिकोण
से कश्मीर में नए सिरे से और समग्र अध्ययन की जरुरत है, ताकि इतिहास के
बिखरे कई सूत्रों को जोड़ा जा सके...
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