'हमदोनों' को रंगीन करना देव साहब का सपना था और उनके इस ख्वाब को सच होता देखने वालों में आखिरकार मैं भी शामिल हो ही गया. आज ही रात 'हमदोनों' का रंगीन संस्करण देखकर आया हूँ. दिल्ली के किसी थिएटर में अब तक देखी यह मेरी पहली फिल्म थी, मगर पिछले तीन महीनों में जो दो फिल्में हॉल में देखी हैं उनकी तुलना में आज दर्शकों की संख्या देख काफी खुशी हुई.
इससे पहले बनारस में ही मैंने 'मुग़ल-ए- आजम' का रंगीन संस्करण देखी थी, मगर इसकी सफलता के पीछे ऐतिहासिक और मजबूत कहानी, संगीत, पृथ्वी राज कपूर - दिलीप कुमार जैसे अदाकारों का अभिनय, मधुबाला का आकर्षण और त्योहारों की छुट्टियों का माहौल जैसे कई कारक कार्य कर रहे थे. मगर 'हमदोनों' की
यह सफलता सिर्फ - और - सिर्फ देव साहब के जुनून और समर्पण की सफलता है. यह सिर्फ उनके व्यक्तित्व का सम्मोहन और जादू ही है जो उनके चाहने वालों को इस 'ब्रांड नेम' की ओर खिंच रहा है.
'नेहरु प्लेस' के 'सत्यम सिनेप्लेक्स' में भी मेरी नजर में अन्य फिल्मों की तुलना में भी इसे ही ज्यादा दर्शक मिले. दर्शकों में निश्चित रूप से पुरानी पीढ़ी के लोग ही ज्यादा थे, मगर कुछ बच्चों / किशोरों की सुनाई दे रही प्रतिक्रियाओं ने संकेत दे दिया कि देव साहब के प्रंशसकों की एक और पीढ़ी तैयार हो चुकी है.
मेरे बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन ( As usual !) ने मुझसे पूछा भी कि - " आप तो देव आनंद के काफी बाद की जेनरेशन के हैं ! " मेरा जवाब था - 'हमारी पीढ़ी शायद उनकी जेनरेशन की नहीं मगर वो तो हमारी जेनरेशन के साथ चल रहे हैं". और शायद इसी मानसिकता और अंदाज के कारण ही वो अब तक अपने समकालिकों की तरह अप्रासंगिक नहीं हुए हैं.
फिल्म की शुरुआत में ही देव आनंद - साधना के "अभी न जाओ छोड़ कर' गीत की शुरुआत के साथ ही देव आनंद को देख स्त्री स्वरों की फुसफुसाहटें और 'हाउ हैण्डसम' जैसी ध्वनियों का थिएटर में गुंजना एक बार फिर स्पष्ट कर गया कि देव साहब सदाबहार थे, हैं और रहेंगे.
उन्होंने हाल ही में अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि यदि 'हमदोनों' सफल रही और दर्शकों की इच्छा रही तो वो अपनी अन्य फिल्मों को भी रंगीन कर देंगे. मेरी कामना है कि ऐसा ही हो ताकि 'देव आनंद - नूतन', 'देव आनंद - मधुबाला' की कैमिस्ट्री को एक बार फिर हमें रजत पटल पर देखने का अवसर मिले.
दर्शकों की आज की प्रतिक्रियाओं को देख एक सवाल भी मन में उठ रहा है कि पुरानी और यादगार फिल्में यूँ ही लगातार प्रदर्शित होती रहीं तो 'शीला', मुन्नी' , 'रजिया' आदि-आदि का क्या होगा ???
Science Bloggers Association पर मेरी एक पोस्ट से हिंदुस्तान में प्रकाशित एक लेख
'हमदोनों' (रंगीन) के एक खूबसूरत ट्रेलर की एक छोटी सी झलक यहाँ भी ( यू ट्यूब से )
सदाबहार अभिनेता व निर्माता – निर्देशक देव आनंद की क्लासिक ‘हमदोनों’ आगामी 4 फरवरी को अपने नए और रंगीन स्वरूप में दर्शकों के समक्ष पुनः प्रदर्शित होने जा रही है.
‘मुग़ल – ए- आजम’ के बाद से पुरानी श्वेत श्याम फिल्मों को रंगीन वर्जन में प्रस्तुत करने का एक नया ट्रेंड स्थापित हुआ है, जो उस दौर की फिल्मों को रंगीन वर्जन में देख पाने की चाहत को पूरा तो करता ही है, साथ ही नई पीढ़ी को आकर्षित भी करता है सिनेमा के उस दौर की ओर जिसने विश्व फलक में आज एक विशिष्ट स्थान बनाये ‘बॉलिवुड’ की बुनियाद रखी है.
‘हमदोनों’ देव साहब के दिल के काफी करीब रही है. इसमें पहली बार उन्होंने दोहरी भूमिका निभाई थी. युद्ध, शांति और प्रेम
जैसी मानवीय भावनाओं की कशमकश को उभारने का प्रयास है – ‘हमदोनों’.
मांगों का सिंदूर न उजड़े, माँ – बहनों की आस न टूटे ...
इस फिल्म के लिए देव साहब को ‘फिल्मफेयर’ के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की कैटेगरी के लिए नामांकन मिला था, जबकि इसके निर्देशक अमरजीत को 1962 के ‘बर्लिन फिल्म फेस्टिवल’ में ‘Golden Bear’ सम्मान के लिए नामांकन मिला था. आज चाहे ये उपलब्धियां सामान्य सी लगती हों,मगर आज इन्हें सामान्य करार देने में तब के इनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
काफी लोगों के लिए यह जानकारी नई होगी कि हिंदी फिल्मों में कैरियर आरंभ करने से पूर्व देव साहब सेना की डाक सेवा से भी जुड़े रहे थे; इस दरम्यान प्राप्त अपने अनुभवों को भी उन्होंने इस फिल्म में अपने अभिनय में ढालने की कोशिश की थी.
देव साहब की फिल्मों का सबसे सशक्त पक्ष उनका संगीत होता है. यह फिल्म भी इस कसौटी पर पूर्णतः खरी उतरती है.
“मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया” गीत हिंदी फिल्मों के इतिहास की एक कालजयी रचना है, जो अब तक और आने वाली कई पीढ़ियों के लिए भी जीवन के फलसफ़े की तरह साथ रहेगा.
और हाँ, देव साहब के सौजन्य से सायास ही प्राप्त यह मेरा सौभाग्य कि इस फिल्म के पुनर्प्रदर्शन के अवसर पर कुछ लिख पाने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ.
देव आनंद, नंदा,साधना के अभिनय, जय देव के संगीत, साहिर लुधियानवी के गीतों और विजय आनंदके लेखन को एक धागे में खूबसूरती से पिरोने वाले निर्देशक अमरजीतद्वारा हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग की इस अविस्मरणीय प्रस्तुति को दोबारा महसूस करने को चलें 4 फरवरी को – ‘हमदोनों’......
मधुर भावनाओं की सुमधुर, नित्य बनाता हूँ हाला;
भरता हूँ उस मधु से अपने, ह्रदय का प्यासा प्याला.
उठा कल्पना के हाथों से, स्वयं उसे पी जाता हूँ;
अपने ही मैं हूँ साकी, पीने वाला मधुशाला.