सदाबहार अभिनेता व निर्माता – निर्देशक देव आनंद की क्लासिक ‘हमदोनों’ आगामी 4 फरवरी को अपने नए और रंगीन स्वरूप में दर्शकों के समक्ष पुनः प्रदर्शित होने जा रही है.
‘मुग़ल – ए- आजम’ के बाद से पुरानी श्वेत श्याम फिल्मों को रंगीन वर्जन में प्रस्तुत करने का एक नया ट्रेंड स्थापित हुआ है, जो उस दौर की फिल्मों को रंगीन वर्जन में देख पाने की चाहत को पूरा तो करता ही है, साथ ही नई पीढ़ी को आकर्षित भी करता है सिनेमा के उस दौर की ओर जिसने विश्व फलक में आज एक विशिष्ट स्थान बनाये ‘बॉलिवुड’ की बुनियाद रखी है.
‘हमदोनों’ देव साहब के दिल के काफी करीब रही है. इसमें पहली बार उन्होंने दोहरी भूमिका निभाई थी. युद्ध, शांति और प्रेम
जैसी मानवीय भावनाओं की कशमकश को उभारने का प्रयास है – ‘हमदोनों’.
मांगों का सिंदूर न उजड़े, माँ – बहनों की आस न टूटे ...
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ओ सारे जग के रखवाले, निर्बल को बल देने वाले,
बलवानों को दे-दे ज्ञान;
अल्लाह तेरो नाम – ईश्वर तेरो नाम...”
इस फिल्म के लिए देव साहब को ‘फिल्मफेयर’ के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की कैटेगरी के लिए नामांकन मिला था, जबकि इसके निर्देशक अमरजीत को 1962 के ‘बर्लिन फिल्म फेस्टिवल’ में ‘Golden Bear’ सम्मान के लिए नामांकन मिला था. आज चाहे ये उपलब्धियां सामान्य सी लगती हों, मगर आज इन्हें सामान्य करार देने में तब के इनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
काफी लोगों के लिए यह जानकारी नई होगी कि हिंदी फिल्मों में कैरियर आरंभ करने से पूर्व देव साहब सेना की डाक सेवा से भी जुड़े रहे थे; इस दरम्यान प्राप्त अपने अनुभवों को भी उन्होंने इस फिल्म में अपने अभिनय में ढालने की कोशिश की थी.
देव साहब की फिल्मों का सबसे सशक्त पक्ष उनका संगीत होता है. यह फिल्म भी इस कसौटी पर पूर्णतः खरी उतरती है.
“मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया” गीत हिंदी फिल्मों के इतिहास की एक कालजयी रचना है, जो अब तक और आने वाली कई पीढ़ियों के लिए भी जीवन के फलसफ़े की तरह साथ रहेगा.
और हाँ, देव साहब के सौजन्य से सायास ही प्राप्त यह मेरा सौभाग्य कि इस फिल्म के पुनर्प्रदर्शन के अवसर पर कुछ लिख पाने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ.
देव आनंद, नंदा, साधना के अभिनय, जय देव के संगीत, साहिर लुधियानवी के गीतों और विजय आनंद के लेखन को एक धागे में खूबसूरती से पिरोने वाले निर्देशक अमरजीत द्वारा हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग की इस अविस्मरणीय प्रस्तुति को दोबारा महसूस करने को चलें 4 फरवरी को – ‘हमदोनों’......
11 comments:
सुंदर प्रस्तुति
it will be nice experience to see him in colors...
यह फिल्म मैंने बहुत पहले देखि थी और बहुत अच्छी लगी थी ... अब रंगीन भी देखने की चाहत है ...
फिल्मों में काफी रूचि रखते हैं आप .....
हमदोनों देखी हुई है ....
आगामी 4 फरवरी को अपने नए और रंगीन स्वरूप में आ रही है ये जानकर ख़ुशी हुई ....
आई तो जरुर देखेंगे ....
मेरी पसंद की फ़िल्म हे,लेकिन जो मजा बलेक एंड बाईट मे हे वो रंगीन मे कहा, कुछ चीजे अपने असली रुप मे ही अच्छी लगती हे, धन्यवद इस जानकारी के लिये
इंतजार रहेगा ....इसे रंगीन देखने का....
बढियां प्रस्तुति -गाने तो अमर हैं मगर फिल्म देखी है या नहीं कह नहीं सकता ...
और देव साहब के सौजन्य और सायास ..बात कुछ हजम नहीं हुयी ....आप क्या देव साहव से किसी भी रूप में जुड़े हैं या इनके पेन फ्रेंड्स हैं ?
आपका टिप्पणीके लिए शुक्रिया .... आप भी हमारे पेशे है जानकर खुशी हुई !
हमदोनो एक बेहतरीन फिल्म है..रंगीन का इंतज़ार
@ अरविन्द मिश्र जी,
"और हाँ, देव साहब के सौजन्य से सायास ही प्राप्त यह मेरा सौभाग्य कि इस फिल्म के पुनर्प्रदर्शन के अवसर पर कुछ लिख पाने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ."
उक्त पंक्ति से मेरा अभिप्राय इतना ही था कि भला आज की पीढ़ी को कभी 'हमदोनों' की भूमिका या समीक्षा लिखने का मौका मिलेगा यह बात तो अकल्पनीय ही थी. ऐसे में देव साहब द्वारा यह अवसर देना सायास ही तो है. आपके ब्लॉग पर भी इस फिल्म की समीक्षा की अपेक्षा रखता हूँ. :-)
साधना और देवानंद का यह गाना ,दिल अभी भरा नहीं, मेरी रोमांटिक गानों की श्रेणी में बहुत ऊपर आता है. और हाँ, हर फ़िक्र को धुंए में, भी कई बार गुनगुना चुकी हूँ. अच्छी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
बहुत सुंदर लिखा...काश हमें भी बड़े पर्दे पर देखने का अवसर प्राप्त होता
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