Monday, February 7, 2011

तभी तो सदाबहार हैं देव साहब .....



'हमदोनों' को रंगीन करना देव साहब का सपना था और उनके इस ख्वाब को सच  होता देखने वालों में आखिरकार मैं भी शामिल हो ही गया. आज ही रात 'हमदोनों' का रंगीन संस्करण देखकर आया हूँ. दिल्ली के किसी थिएटर में अब तक देखी यह मेरी पहली फिल्म थी, मगर पिछले तीन महीनों में जो दो फिल्में हॉल में देखी हैं उनकी तुलना में आज दर्शकों की संख्या देख काफी खुशी हुई.  

इससे पहले बनारस में ही मैंने  'मुग़ल-ए- आजम' का रंगीन संस्करण देखी  थी, मगर इसकी सफलता के पीछे ऐतिहासिक और मजबूत कहानी, संगीत, पृथ्वी राज कपूर - दिलीप कुमार जैसे अदाकारों का अभिनय,  मधुबाला का आकर्षण और त्योहारों की छुट्टियों  का माहौल जैसे कई कारक कार्य कर रहे थे. मगर 'हमदोनों' की
यह सफलता सिर्फ - और - सिर्फ देव साहब के जुनून और समर्पण की सफलता है. यह सिर्फ उनके व्यक्तित्व का सम्मोहन और जादू ही है जो उनके चाहने वालों को इस 'ब्रांड नेम' की ओर खिंच रहा है. 

'नेहरु प्लेस' के 'सत्यम सिनेप्लेक्स' में भी मेरी नजर में अन्य फिल्मों की तुलना में भी इसे ही ज्यादा दर्शक मिले. दर्शकों में निश्चित रूप से पुरानी पीढ़ी के लोग ही ज्यादा थे, मगर कुछ बच्चों / किशोरों  की सुनाई दे रही प्रतिक्रियाओं ने संकेत दे दिया कि देव साहब के प्रंशसकों की एक और पीढ़ी तैयार हो चुकी है.

मेरे बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन ( As usual !) ने मुझसे पूछा भी कि - " आप तो देव आनंद के काफी बाद की जेनरेशन के हैं ! " मेरा जवाब था - 'हमारी पीढ़ी शायद उनकी जेनरेशन की  नहीं मगर वो तो  हमारी जेनरेशन के साथ चल रहे हैं". और शायद इसी मानसिकता और अंदाज के कारण ही वो अब तक अपने समकालिकों की तरह अप्रासंगिक नहीं हुए हैं. 

फिल्म की शुरुआत में ही देव आनंद - साधना  के "अभी न जाओ छोड़ कर' गीत की  शुरुआत के साथ ही देव आनंद को देख स्त्री स्वरों की फुसफुसाहटें और 'हाउ हैण्डसम' जैसी ध्वनियों का थिएटर में गुंजना एक बार फिर स्पष्ट कर गया कि देव साहब सदाबहार थे, हैं और रहेंगे. 


उन्होंने हाल ही  में अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि यदि 'हमदोनों' सफल रही और दर्शकों की इच्छा रही तो वो अपनी अन्य फिल्मों को भी रंगीन कर देंगे. मेरी कामना है कि ऐसा ही हो ताकि 'देव आनंद - नूतन', 'देव आनंद - मधुबाला' की कैमिस्ट्री को एक बार फिर हमें रजत  पटल पर देखने का अवसर मिले. 

दर्शकों की आज की  प्रतिक्रियाओं को देख एक सवाल भी मन में उठ रहा है कि पुरानी और यादगार फिल्में यूँ ही लगातार प्रदर्शित होती रहीं तो 'शीला', मुन्नी' , 'रजिया' आदि-आदि का क्या होगा ???
Science Bloggers Association पर मेरी एक पोस्ट से हिंदुस्तान में  प्रकाशित एक लेख 
'हमदोनों' (रंगीन) के एक खूबसूरत ट्रेलर की एक छोटी सी झलक  यहाँ भी ( यू ट्यूब से )





4 comments:

राज भाटिय़ा said...

मेरी पसंद की फ़िल्मो मे एक यह भी हे, धन्यवाद

Dr Praveen K. Sharma said...

kamaal ka abhinay kiya hai is mein Dev Sahab ne. Aur is film ke gane bhi unhin ki tarhan sadabahar hain.
Keep it up.

दर्शन कौर धनोय said...

अभिषेक जी ,क्या दूर की कोडी लाए हे आप ! देव सा.अपने समकालीन हीरोज में नम्बर वन तो थे साथ ही वो आधुनिकता के और प्रगति के भी पुजारी थे --हम दोनों मेने कई बार देखि हे पर ब्लेक एंड वाईट --कलर फिल्म जल्दी ही देखुगी विशेष कर इस गीत के लिए ---इस सार्थक पोस्ट के लिए धन्यवाद |
"अभी न जाओ छोड़ कर ,के दिल अभी भरा नही "

Prem ki duniya said...

dev sahab mere sabse priya abhinetao me se ek hai. unke jaisa slylist actor to aaj tak paida hi nahi huwa hai.

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