अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है दीपावली। इसके प्रारंभ की जड़ें अतीत से भी परे हिन्दुस्तानी जनमानस की आस्था की परतों में है। मगर यह भी वास्तविकता है की यह पर्व अलग-अलग नामों के साथ लगभग पुरे विश्व में प्रचलित है. तो क्या हमें इस पर्व की मूल तक पहुँचने के बारे में नही सोचना चाहिए!
भारत में जैसा की हर पर्व के पीछे हर संप्रदाय की अपनी एक अलग ही मान्यता है, जो इसकी विविधता के कारण स्वाभाविक भी है। मगर जहाँ तक मैं समझता हूँ दिवाली की जड़ें 'आर्यों' के आगमन के पूर्व उस समाज तक भी जाती हैं जब 'मात्रिसत्तात्मक' व्यवस्था प्रचलित थी और प्रकृति की भी उपासना होती थी।
भारत में अधिकांश बातें प्रतीकों में छुपी हुई हैं। हमारे गांवो और आदिम समाज जो पूजा की आधुनिक और कानफोडू शोर वाली प्रथा से अछुता है आज भी दीपावली में जिन प्रमुख प्रतीकों का प्रयोग करता है वो हैं- 'दिया', 'मछली' और 'घडा' जो की fertility या 'प्रजनन शक्ति' के प्रतीक हैं. आदिम कृषक समाज धरती को माँ के रूप में देख उसकी उर्वरा शक्ति की ही पूजा करता था. भारत के सांस्कृतिक एकीकरण के अभूतपूर्व प्रयास में 'राम' के मध्यम से इस त्यौहार को भी हिंदू संस्कृति में आत्मसात कर लिया गया. आज भी ग्रामीण भारत में दीपावली मनाने की प्रक्रिया 'पारंपरिक' है 'सांस्कृतिक' नहीं. उदाहरण के लिए बिहार, झारखण्ड के गांवो में 'घरोंदा' बनाना, यम का दिया जलाना, या 'सोहराई' मनाया जाना जिसमें दिवाली के अगले दिन घर की दीवारों को प्राकृतिक रंगों से रंग जाता है और एक 'रेखा' द्वारा घर को घेर दिया जाता है जिसे 'बंधना' भी कहते हैं. मान्यता है की इससे 'अकाल मृत्यु' नहीं होती.
इन सारी परम्पराओं की विधि किसी धार्मिक पुस्तक में नही मिलेगी मगर इनकी जनस्विकार्यता इनके प्रचलन के मूल तत्वों पर पुनर्दृष्टि डालते हुए भारत की विविधता को एक नए परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत पर बल देती है, जोकि हमारी साझी धरोहर भी है.
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17 comments:
आभार जानकारी का. अच्छा आलेख है. दीपावली की शुभकामनाऐं.
आपको सपरिवार दीपोत्सव की शुभ कामनाएं। सब जने सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। यही प्रभू से प्रार्थना है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की जानकारी देता हुआ आपका ये ब्लाग बहुत अच्छा लगा/आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें/
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने । मैने भी अपने ब्लाग पर एक किवता िलखी है । समय हो तो आप पढें आैर प्रितिकर्या भी दंें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com.
ऐसे लोक मान्यताओं और परम्पराओं के अभिलेखीकरण की जरूरत है -आप की इसमे रूचि है आप इस काम को शुरू करें !
इस लेख के बहाने काफी जानकारी भी मिली। शुक्रिया।
-बहुत उम्दा!! वाह वाह!!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने,
उम्मीद है आगे भी ऐसे लेख पढने को मिलेंगे
मिश्रा जी,
आपकी सामयिक रचनायें अच्छी लगीं. आपके साईट को फोल्लो कर रहा हूँ. यदि पसंद हो तो मेरे साईट को भी फोल्ल्लो करें.
शुभकामनयें.
त्योहारों का सत्य स्वरुप उजागर किया है आपने इमानदारी से मेरी नई रचना सम्पूर्ण देश की हवा एक है अवश्य पढ़ें आपका स्वागत है
बहुत बढ़िया , लिखते रहे और हमारे जैसे नौजवानों तक अपनी सोच को पहुचाते रहे .....धन्यवाद
Wah....
ati sunder...
sadhuwaad......
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की जानकारी देता हुआ आपका ये ब्लाग बहुत अच्छा है. / आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
thanks abhishek for ur comment on my blog. it led me to remove that bloody political message from my blog which should talk abt love and love only, nothing else.
cheers
आपका ब्लॉग आज पढ़ा बहुत सी बातें इस में बहुत अच्छी है और नई लगी .....लिखते रहे
Apko deepawali ki hardik shubhkaamna.
ek achhi jankari uplabdh karayi hai apne. kuch naya janene ko mila.
आप के पीढी को जब इस तरह से सोचते और अपने संस्कृति, विचारों को देखते गुनते हुए पाती हूँ तो अपार हर्ष होता है.
बड़ा ही सुंदर और अत्यन्त प्रभावी आलेख है आपका.हमेशा लिखते रहें......सत्य कहा आपने हमारे संस्कृति में निहित पर्व त्यौहार अपने में प्रतीक रूप में अपार जनकल्याणकारी भाव समेटे हुए हैं.
दीवाली तो हो ली बंधु
कहां फंसे हुये हो
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