Friday, November 21, 2008

गंगा तूँ बहती है क्यों?


गंगा तूँ बहती है क्यों?
ये दो तस्वीरें हैं हमारी आस्था की केन्द्र माँ गंगा की। बनारस जहाँ हाल ही में गंगा महोत्सव मनाने की वार्षिक औपचारिकता पुनः नए वादों और इरादों के साथ पूरी की गयीं वहीँ गंगा के मानस पुत्रों का यह व्यवहार क्या यह सोचने को विवश नही कर देता कि अब गंगा माता को इस धराधाम और सुख-दुःख के चक्र से मोक्ष मिल ही जाना चाहिए। गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करवा आत्ममुग्ध हो रहे गंगापुत्रों के लिए क्या यह राष्ट्रीय शर्म का विषय नहीं कि अपनी माँ को स्वच्छ और सुरक्षित रखने के लिए उन्हें सरकारी तंत्र की याचना करनी पड़ रही है! इन्सान कि तरह नदियों का भी जीवनचक्र होता है और एक-न-एक दिन गंगा को भी जाना ही है, मगर आज कि परिस्थितियां गंगा को अकालमृत्यु या आत्महत्या के लिए विवश कर दें तो अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथ कि आत्मा अपने वंशजों को माफ़ नहीं करेगी।

15 comments:

नीरज मुसाफ़िर said...

बहुत ही सटीक मुद्दा उठाया है. हमारा सरकारी तंत्र ऐसा है कि "जिस चीज का सत्यनाश करना हो, उसके नाम के साथ राष्ट्रीय लगा दो." यही हाल गंगा का है. बनारस तो बहुत दूर है, गंगाजल तो हरिद्वार में ही प्रदूषित होने लगा है.

संगीता पुरी said...

बहुत सही बात की है आपने। स्‍वार्थवश भी हम उसकी थोडी कद्र कर दें , जिससे इतना लाभ मिलता है , तो कोई बात हो। सब एक दूसरे के भरोसे पडे हैं।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

किसी भी बहुल, सुलभ चीज की कदर नहीं होती। यही बात हमारे यहां पानी पर लागू होती है। पंजाब जैसे प्रांत में जिसे पांच-पांच नदियों का वरदान प्राप्त है, जब वहां पानी की राशनिंग हो चुकी है, तो बाकी जगहों का भगवान ही मालिक है। फिर भी हम सुधरते, सीखते नहीं दिखते। अभी कुछ दिनों पहले किसी अफ़्रिकी देश का एक चित्र देखने को मिला था जिसमें एक बोर्ड दिखलाई पड़ रहा था, जिस पर लिखा हुआ था "पीने का पानी हर मंगलवार को"। कोई बड़ी बात नहीं है कि ऐसी ही परस्थितियों से हमें भी दो-चार होना पड़ जाए।

mehek said...

bahut sahi kaha,sehmat hai

अनुपम अग्रवाल said...

आगे आगे कुछ तो सोचो ,
भीगी आँख मचलतापानी ,
गंगा तो बस गंगा माँ है ,
सुबक सुबक कर हुई पुरानी.

Keshav Dayal said...

aapaki chintaa bilkul jaayaj hai. hamein gambheerataa se is par vichaar karanaa hogaa. Asthaa kaa rok panaa jaraa kathin kaam hai so hamein asthaa ke parinaamon ko samaapat karane ki dishaa mein pahal karani hogee. Samayik muddaa uthaane ke liye aap badhaayee ke patra hain.

Aruna Kapoor said...

गंगा नदी की पावनता और स्वच्छता का जिम्मा बेशक हमारा ही है!....बहुत सुंदर आलेख!

Amit K Sagar said...

हमें भी अपना योगदान देना होगा हर अच्छे काम में, हम हर काम को सरकार पर नहीं छोड़ सकते. इक बहुत उम्दा और सटीक लेखन, चिंतन के लिए वधाई. आभार.

Aadarsh Rathore said...

बेहतरीन सोच।

BrijmohanShrivastava said...

भाई बिल्कुल सही कहा आपने =अकाल म्रत्यु या आत्महत्या न कहकर सीधे कहिये कि हम गंगा माँ के हत्यारे हैं / भारीरथ जी ने भी सोचा न होगा इस दुर्दशा के वाबत /आपने बहुत सटीक लिखा है और तस्वीरें भी बहुत अच्छी छांट कर लगी हैं /वास्तब में राष्ट्रीय नदी के साथ साथ राष्ट्रीय शर्म की भी घोषणा होनी चाहिए /कम शब्दों में बहुत गहरी बात कही है आपने /राष्ट्रीय शर्म बहुत प्यारा शब्द उपयोग किया है आपने

Smart Indian said...

सच है - सौ करोड़ की जनता में एक और भागीरथ क्यों न हुआ?

admin said...

इसके लिए कहीं न कहीं हम सब भी जिम्‍मेदार हैं। अगर हम लोग चेत जाएं, तो नदियों की अकाल मृत्‍यु को रोका जा सकता है।

Vineeta Yashsavi said...

Ganga ko RASHTRIYA NADI ghosit karne ki jarurat nahi hai. jarur to is baat ki hai ki maa ka draza pane wali is nadi ka samman bhi maa ke saman hi ho.

tasver aur vishar dono hi bahut achhe hai.

संगीता-जीवन सफ़र said...

गंगा नदी की पावनता और स्वच्छता के लिये हमें भी अपना योगदान देना होगा।आपने बहुत ही सही कहा।

sanjay jain said...

abhishek jee /aapke bhadas blog par kament post nahin ho parahii hai

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