Monday, January 12, 2009

युवा सन्यासी: स्वामी विवेकानंद


स्वामी विवेकानंद जिनकी पहचान तब तक अधूरी है जब तक इनके नाम के आगे 'युवा सन्यासी' की उपमा न लगा दी जाए, और अधूरी है भारत की पहचान भी जिसके बारे में कहा जाता है कि "भारत को जानना हो तो विवेकनानंद को जानो।" एक युवा दृष्टी से इस देश को देखते हुए पुरातन से नवीन के मन्त्र को ढूंढने और एक नए दृष्टिकोण को स्थापित करने में स्वामीजी का देश सदा ऋणी रहेगा। स्वामी जी ने न सिर्फ़ आध्यात्मिक जगत को प्रभावित किया बल्कि राजनीतिक जगत का एक वर्ग भी उनसे प्रेरणा पाता था, जिसकी स्वीकारोक्ति पं. नेहरू ने भी की थी। युवा भारत और युवा शक्ति का सपना देखने वाले स्वामीजी के 'उत्तिस्थत, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत' के जयघोष को आज पुनः आत्मसात करने की जरुरत है, तभी युवा भारत की अवधारणा सत्य हो पायेगी।
स्वामी जी की 146 वीं जयंती पर हमारा श्रद्धापूरित नमन।

2 comments:

Vineeta Yashsavi said...

Viveka nand ji mere pasandida vyaktitvo mai se ek hai....

unka likha hua padhna mujhe behad achha lagta hai.

apne unke baare mai likh ke achha kiya wo bhi unke janm diwas pe.

राज भाटिय़ा said...

जिन के बताये रास्ते पर हर युवा को आज चलना चाहिये.
लेकिन कोन चल रहा है????
धन्यवाद

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