पश्चिम से आ रही किसी परम्परा के नाम पर अंधविरोधी मानसिकता पर पुनर्विचार की जरुरत है। जरा गौर से देखें तो वैलेंटाईन डे हमारी उसी प्राचीन परम्परा का वारिस है जो अतीत के किसी अध्याय में अपनी जड़ों से अलग हो आज पश्चिमी रास्तों से गुजरता अपनी जड़ों को धुन्धता वापस आ रहा है।
क्या कारण है की वैलेंटाईन डे तभी मनाया जाता है जब की हमारे यहाँ वसंत अपने पूरे शबाब पर होता है, जबकि पश्चिमी 'डेज' ऋतुओं पर आश्रित नहीं होते। हमारे यहाँ प्राचीन काल से ही वसंत में 'वन-विहार', 'झुला दोलन' , 'पुष्प-श्रृंगार' आदि की परम्परा रही है। 'मदन-उत्सव', 'शालभंजिका पर्व' आदि का उल्लेख हमारे आदि साहित्यिक और धार्मिक ग्रंथों में भी है। कालिदास व बाणभट्ट की रचनाओं तथा 'जातक कथाओं' में भी वसंत क्रीडाओं का अनूठा वर्णन किया गया है। 'वसंत पंचमी' से आरम्भ होकर'फाल्गुन पूर्णिमा' तक जारी रहने वाला प्रकृति के संग उल्लास का यह पर्व किसी विदेशी 'डे' या 'वीक' का मोहताज नहीं है।
अंध विरोध और गुंडागर्दी के साथ-साथ अत्याधुनिक होने के भ्रम में जीने वालों के लिए भी इस उत्सव का प्रतिषेध के बजाय इसका वास्तविक भारतीयकरण ही सही समाधान होगा. क्यों न हम मौका दें इस भटके हुए अतीत के एक अंश को उसका सुंदर स्वरुप लौटाने का ! मगर है कोई असली भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने में सक्षम कोई संगठन !
क्या कारण है की वैलेंटाईन डे तभी मनाया जाता है जब की हमारे यहाँ वसंत अपने पूरे शबाब पर होता है, जबकि पश्चिमी 'डेज' ऋतुओं पर आश्रित नहीं होते। हमारे यहाँ प्राचीन काल से ही वसंत में 'वन-विहार', 'झुला दोलन' , 'पुष्प-श्रृंगार' आदि की परम्परा रही है। 'मदन-उत्सव', 'शालभंजिका पर्व' आदि का उल्लेख हमारे आदि साहित्यिक और धार्मिक ग्रंथों में भी है। कालिदास व बाणभट्ट की रचनाओं तथा 'जातक कथाओं' में भी वसंत क्रीडाओं का अनूठा वर्णन किया गया है। 'वसंत पंचमी' से आरम्भ होकर'फाल्गुन पूर्णिमा' तक जारी रहने वाला प्रकृति के संग उल्लास का यह पर्व किसी विदेशी 'डे' या 'वीक' का मोहताज नहीं है।
अंध विरोध और गुंडागर्दी के साथ-साथ अत्याधुनिक होने के भ्रम में जीने वालों के लिए भी इस उत्सव का प्रतिषेध के बजाय इसका वास्तविक भारतीयकरण ही सही समाधान होगा. क्यों न हम मौका दें इस भटके हुए अतीत के एक अंश को उसका सुंदर स्वरुप लौटाने का ! मगर है कोई असली भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने में सक्षम कोई संगठन !
तो आइये हम हीं उत्सव मनाएं प्रकृति और प्रेम के इस मिलन का.....
9 comments:
Mai aapki baat se puri tarah sahmat hu Abhishak ji
वाकई खुशी मनाने का अवसर कभी पराया हो ही नहीं सकता।
न उनको दिखता है, न इन को दिखता है।
जिस को दिखता है बस पराया दिखता है।।
पराया नही है वैलेंटाइन तो अपना भी नही है अगर हमें उसे अपना बनाना है तो जो प्रेम हम प्रकट करना चाह रहे हैं वो एक व्यक्ति विशेष के लिए न हो कर सब के लिए हो , प्रेम करना ग़लत नही है लेकिन प्रेम के नाम पर खिलवाड़ करना ग़लत है .
धन्वाद
बिल्कुल बजा फ़रमाते हैं आप मिश्राजी, सच में पराया नहीं है वेलेण्टाइन डे। हैप्पी वेलेण्टाइन डे टू यू।
बिल्कुल सहमत -बढियां विचार !
वेलेंटाइन डे का इतना प्रचार वेलेंटाइन डे के विरोधियों के कारण हुआ है.
कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो हर खुश होने वाले मौकों को फना कर देना चाहते हैं।
सही फरमाया आपने .
इस पर और गौर किये जाने की ज़रूरत है।
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