Monday, February 9, 2009

रंग बसंती आ गया.....


जलवायु परिवर्तन की तमाम बहसों के परे जनमानस के बीच बसंत आ गया है। पीली सरसों, नए पुष्पों, नव पल्लवों के बीच कई सुकोमल भावनाओं में भी स्पंदन जागृत हो रहा है। प्रकृति दोनों हाथों से अपनी सुन्दरता के प्रदर्शन को प्रस्तुत है , मगर कंक्रीट के जंगलों के मध्य प्रकृति के लिए स्थान ही कहाँ बचा है!
तो आइये चलें बसंत-विहार के लिए उन आम जगहों से हट कर उस ओर जो तथाकथित विकास की काली छाया से थोड़े परे हैं। ऐसी ही एक खुबसूरत जगह है 'झारखण्ड के कश्मीर' के रूप में चर्चित 'हजारीबाग'। पाषाणयुगीन धरोहर और सांस्कृतिक विरासत को संजोये यह स्थल अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए भी प्रसिद्ध है। नेशनल पार्क, शालपर्णी, कन्हरि पहाड़ी जैसे पर्यटक स्थल ही नहीं छोटे-छोटे गावों और हरे-पीले खेतों में भी वैसी ही कशिश है, बस प्रकृति को निहारने वाली एक पारखी नजर चाहिए।
यह सहज-सरल सुन्दरता आपको अपने शहर के आस-पास भी मिल जायेगी, बस जरुरत है उसे मानवीय लोभ के दुष्प्रभाव से बचाने और संजोने की।
तो आइये मनाएं इस वसंत का उत्सव उसी अछूते सौंदर्य के साथ।

9 comments:

शोभा said...

sahi likha hai aapne.

Vineeta Yashsavi said...

Sunder Shabd aur sunder tasveer.

hem pandey said...

हजारीबाग के बारे में जानकारी देने के लिए और बसंत आगमन के चित्र के लिए धन्यवाद. -
'नव बसंत आया फूल खिले फूल खिले'

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

अभिषेक जी ,
आज तो हर व्यक्ति शहर के शोरगुल ,चकाचौंध से भाग कर नीरव ,एकांत ,शान्ति चाहता है.
ऐसे में आपके ब्लॉग पर आकर
वाकई शान्ति मिलती है.
हेमंत कुमार

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर लिखा आप ने.
धन्यवाद

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अभिषेक जी, लेख तो आपने बहुत बढिया लिखा है.
किन्तु वर्तमान परिवेश में हम लोग अपनी दिनचर्यायों में इतना ज्यादा उलझ चुके है कि मन का सौन्दर्यबोध भी कहीं खो गया लगता है.
अब तो कब आयो बसन्त ........ओर कब गयो बसन्त पता ही नहीं चलता.

daanish said...

हजारीबाग के बारे में जान कर
बहोत अच्छा महसूस हुआ ....
और आपकी पर्युक्त शैली ने तो वसंत ऋतू का सुकोमल एहसास
भी करवा ही दिया ....
बधाई . . . . . . .
---मुफलिस---

Dev said...

Nice article...nicepic
Badhi

Bahadur Patel said...

bahut hi sundar hai.

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