Monday, March 9, 2009

क्या वो कॉमेट 'लुलिन' था?

कल मैं भी एक कॉमेट की तरह ही नवाबों के शहर लखनऊ से गुजरा। प्लान में तो 'तस्लीम' के रजनीश जी से मिलना भी था, जो पूरा न हो सका। मगर सुबह-सुबह एक अद्भुत खगोलीय नज़ारे ने मेरा स्वागत किया। सूर्योदय की लालिमा की शुरुआत के साथ ही (लगभग 6:15 पर) आकाश में मैंने एक 'कॉमेट' को गुजरते देखा। वो तो अपने अजीजों के नींद के ख्याल ने मुझे रोक लिया, वर्ना exitement में मैं उसी समय उन्हें भी इस अवलोकन में शामिल करने वाला था। आस-पास के लोगों का ध्यान मैंने इस और खिंचा मगर आलमबाग में बसों के इंतजार में खड़े लोग इस दिशा में विशेष उत्सुक नहीं थे। तकरीबन 15 मिनट तक मैं इस पिंड की गतिशीलता को देखता रहा। अपने मोबाइल कैमरे से मैंने तस्वीर तो ली मगर वह इतनी प्रभावशाली नहीं थी कि उसे ब्लॉग पर लगा पाता। अब तो हमारी वैज्ञानिक चेतना वाले ब्लौगर्स ही बता सकेंगे कि वो कॉमेट 'लुलिन' था या कोई और; और इसके भारत में दिखने की सम्भावना थी भी या नहीं!

6 comments:

Arvind Mishra said...

वह कोई टूटता सितारा रहा होगा -लुक्क !

Vineeta Yashsavi said...

Yaha to vakai adbhud nazara raha hoga...

P.N. Subramanian said...

किसी टूटते सितारे को क्या १५ मिनट तक देख सकेंगे?

संगीता पुरी said...

हमलोग अभी तक सोचते ही रहे और आपने देख भी लिया ... जो भी रहा हो ... एक अलौकिक नजारा तो आपने देख ही लिया ... बधाई हो ... होली की भी ढेरो शुभकामनाएं।

राज भाटिय़ा said...

थोडा बताते भी विस्तार से देखने मै केसा लगा, लेकिन १५ मिंट तक, पता नही यह क्या हो सकता है, लेकिन बहुत अदभुत लगा.
धन्यवाद

नीरज गोस्वामी said...

घूम तो हम भी रहे थे सुबह सुबह लेकिन ये उल्का पिंड या धूमकेतु दिखा ही नहीं...इसके लिए आप जैसी पारखी नज़र चाहिए...
होली की शुभकामनाएं
नीरज

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