Thursday, March 19, 2009

बनारस का 'बुढ़वा मंगल' मेला


उत्सवप्रिय बनारस का प्रसिद्द 'बुढ़वा मंगल' मेला हाल ही में संपन्न हुआ. होली के अगले मंगल को आयोजित होने वाला यह आयोजन बनारसी मस्ती और जिन्दादिली की एक नायाब मिसाल है. मान्यता है कि होली जिसमें मुख्यतः युवाओं का ही प्रभुत्व रहता है, को बुजुर्गों द्वारा अब भी अपने जोश और उत्साह से परिचित कराने का प्रयास है- 'बुढ़वा मंगल' मेला.
बनारस के इस पारम्पिक लोक मेले से हिंदी साहित्य शिरोमणि भारतेंदु हरिश्चंद्र का भी जुडाव रहा है. बनारस राजपरिवार ने भी इस परंपरा को अपना समर्थन दिया. इस मेले के आयोजन को कई उतार-चढाव से भी गुजरना पड़ा. किन्तु आम लोगों की सहभागिता और दबाव ने प्रशासन को भी इस समारोह के आयोजन से तत्परता से जुड़ने को बाध्य किया. पिछले कई वर्षों से प्रशासन के सहयोग से गंगा तट पर इस आयोजन को कराया जा रहा है. गंगा की लहरों पर एक बड़े बजडे (नौका) पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, सर पर बनारसी टोपी सजाए बैठे संस्कृतिप्रेमी और आस-पास छोटी-बड़ी नौकाओं तथा घाटों पर बैठे सुधि दर्शकगण इस सांस्कृतिक नगरी की पारम्परिकता को एक नया आयाम देते हैं. राजपरिवार द्वारा रामनगर दुर्ग में भी इस कार्यक्रम का विधिवत आयोजन किया जाता है.

12 comments:

Vineeta Yashsavi said...

jankari Rochak jankari di apne...

lagta hai yah mela bahut shandaar hota hoga...

mamta said...

ये तो अच्छी ख़बर है ।

रंजू भाटिया said...

नाम ही पहली बार सुना रोचक लगा जानना शुक्रिया

Udan Tashtari said...

बहुत रोचक जानकारी बुढ़वा मंगल मेले की!!

Arvind Mishra said...

ओह इस बार छूट गया यह !

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ढंग से आप ने एक रोचक जानकारी दी.
धन्यवाद

नीरज गोस्वामी said...

रोचक जानकारी....
नीरज

Science Bloggers Association said...

रोचक जानकारी।

hem pandey said...

इस मेले के बारे में पहली बार सुना.जानकारी अपेक्षाकृत विस्तृत होती तो अच्छा रहता.

नीरज मुसाफ़िर said...

मेले तो अपने हिंदुस्तान की शान हैं.

Mumukshh Ki Rachanain said...

रोचक जानकारी....
सुंदर ढंग .............
अति शानदार प्रस्तुति....................

चन्द्र मोहन गुप्त

Harshvardhan said...

humko iski jaankaari nahi thi ..aapke blog ke madhyam se is ko jaan paaye... blog achcha hai...

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