ऐसी ही घटनाओं की कड़ी में अब हजारीबाग के पाषाण वृत्त (Stone Circle) भी आ गए हैं. जिस प्राकैतिहसिक धरोहर के साथ इस क्षेत्र को अन्तराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र में देखने की कल्पना की जा रही थी, उसकी दुर्दशा दिल को तोड़ देने वाली है. अन्वेषक श्री शुभाषिस दास के एकल प्रयासों से यह स्थल 'समदिवारात्रि' (Equinox) देखने के विश्व में एकमात्र प्राकैतिहसिक स्थल के रूप में विकसित हो रहा था. विरासत की सुरक्षा से जुड़े उच्चतम संस्थानों के अलावा प्रशासन भी इस स्थल की महत्ता से वाकिफ था, मगर इस स्थल की सुरक्षा को तमाम आग्रह के बावजूद नजरअंदाज किया गया. परिणाम ? आज यह स्मारक भी किसी की प्यार की निशानी के घाव अपने सीने पर झेलने को विवश है.
प्रशासन से भी कहीं ज्यादा ऐसे मामलों में स्थानीय जनता दोषी है जो अपनी विरासत के प्रति उपेक्षा का भाव रखती है. हो सकता है रोटी-रोजगार का दबाव इस विषय को हमारी प्राथमिकता सूची में नहीं आने देता, मगर खास ऐसे उद्देश्यों के लिए निर्मित सरकारी विभाग भला किस काम के हैं? 'विश्व विरासत दिवस' पर रूटीन जुमलों और औपचारिकताओं के अलावे अपने आस-पास बिखरी अमूल्य धरोहर को सहेजने की दिशा में सार्थक पहल ही हमें अपनी विरासत पर गर्व करने के अवसर उपलब्ध करा सकेगी.