Wednesday, May 13, 2009

घाघ-भड्डरी की खोज में


भारत में ज्ञान-विज्ञान की एक प्राचीन और गौरवपूर्ण परंपरा रही है। गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा आदि में तो हमारा योगदान सर्वविदित तो है ही; कृषि तथा मौसम विज्ञान में भी हमारी भूमिका किसी से कम नहीं। एक मानसून आधारित और कृषि पर आश्रित समाज में ऐसा होना स्वाभाविक ही था। सदियों के अनुभवों को लोक स्मृतियों में संजोये हुए वाक्क् परंपरा से आगे बढाया जाता रहा। भारतीय जन-मानस में रचे बसे घाघ-भड्डरी इसी परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं.
कृषि या मौसम वैज्ञानिक सदृश्य छवि बना चुके घाघ और भड्डरी के अस्तित्व के सम्बन्ध में कई मान्यताएं प्रचलित है। उत्तर भारत में अति प्रचलित इन दोनों पात्रों की कहावतों के रूप में मौसम सम्बन्धी निर्देश आज भी आम ग्रामीण मानस के लिए मौसम के पूर्वानुमान का अचूक स्रोत है। इस क्षेत्र का प्रायः हर प्रदेश इन्हें अपनी मिट्टी से जुड़ा मानता है। उपलब्ध लोकोक्तियों की भाषा शैली इन्हें बिहार तथा उत्तरप्रदेश के भी करीब पाती है, मगर इनका जुड़ाव बंगाल और राजस्थान से भी उतना ही है। इस प्रकार कहें तो कृषि तथा वर्षा पर आश्रित हर प्रदेश के शायद एक अपने ही घाघ-भड्डरी हैं; जो वहां की प्रचलित बोली में उन्हें मौसम सम्बन्धी ज्ञान बाँट रहे हो सकते हैं। वैसे भी इस क्षेत्र में प्रचलित शब्द 'घाघ' एक चतुर व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है, ऐसे में 'घाघ' व्यक्ति विशेष को दी जाने वाली एक उपाधि भी हो सकती है।
लोक मान्यताओं के अनुसार घाघ एक प्रसिद्ध ज्योतिषी भी थे, जिन्होंने भड्डरी जो संभवतः गैर सवर्ण स्त्री थी (क्या कहें आज हर शब्द बड़े नपे-तुले ढंग से प्रयोग करना पड़ता है, जाने किसकी आस्था को कहाँ चोट पहुँच जाये !) की विद्वता से प्रभावित हो उससे विवाह किया था। इस प्रकार लोक जीवन में घाघ के साथ भड्डरी की कहावतों को भी न सिर्फ समान स्थान मिला हुआ है, यह तत्कालीन समाज में विद्वता के वर्गीकरण को नकार प्रतिभा की स्वीकृति के नजरिये को भी दर्शाता है। समय के साथ इनकी कहावतों में संभावित हेर-फेर से इनकार नहीं किया जा सकता, मगर लाखों कृषकों की आस्था में जीवित घाघ-भड्डरी की लोकोक्तियों पर सार्थक वैज्ञानिक चिंतन अपेक्षित तो है ही।
इनकी लोकोक्तियों पर केन्द्रित एक पोस्ट यहाँ भी मौजूद है।
तस्वीर- साभार गूगल

11 comments:

Arvind Mishra said...

अभिषेक मुझे लगता है घाघ भड्डरी पर अनुसन्धान अभी भी जरूरत है !

Science Bloggers Association said...

जब तक खेती किसानी है, इस धरा पर घाघ और भडडरी का महत्व बना ही रहेगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

BrijmohanShrivastava said...

यह लेख भी पढ़ा और साथ में ""यहाँ भी "" पर जाकर घाघ भड्डरी की कहाबतें /घाघ भड्डरी जो भी हों, पति पत्नी हों, मित्र हों ,,एक ही नाम के साथ उपनाम जुड़ा हो ,खोज जारी है /,कृषि के लाभ नुकसान पर प्रकृति के पड़ने वाले प्रभाव के जानकार तो थे ही मनुष्य को संतोष जनक जीवन जीने का मार्ग भी सुझाते थे ""ऊँच अटारी मधुर बतास ,घाघ कहें घर ही कैलाश ""ये वास्तब में कहाँ के थे अविदित है परन्तु मौसम से हिसाब से जब भी इन्हें ऐसा मालूम होता था कि वर्षा कम होगी या या अकाल पड़ेगा तब गुजरात और मालवा का जिक्र जरूर आता था और पुराने ज़माने में दोनो ही क्षेत्र संपन्न थे /मालवा वावत तो कहा ही गया है डग डग रोटी पग पग नीर /तो वे ऐसी स्थिति में कहा करते थे ""हम जाएँ पिया मालवा तुम जाओ गुजरात ""कुछ कहावते वर्तमान परिवेश का दर्शन भी कराती है कि कैसी सामाजिक व्यवस्था थी /आपने तो इन्हें पढ़ा ही है एक कहावत पढना """....................../वे बरसें ये घर करें यामे मीन न मेख ""

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अभिषेक जी।
आज की पीढ़ी तो घाघ और भडडरी को जानती ही नही है। इसके लिए वर्तमान शिक्षापद्धति दोषी है।
आपने बहुत अच्छी पोस्ट लगाई है।
बधाई।

Vineeta Yashsavi said...

Apne kafi jankari purn post lagayi hai...

प्रवीण त्रिवेदी said...

सच है !!इस ज्ञान बगैर किस्सी पूर्वाग्रह के विज्ञान के साथ जोड़ने की जरूरत है , बकिया तो हम ब्लोग्गेर्स कर ही लेंगे!!
वैसे अशोक पाण्डेय जी का लिंक भी उल्लेख लायक है!!
http://khetibaari.blogspot.com/2008/08/blog-post_06.html

निर्मला कपिला said...

अविना्श जी सछ कहूँ मेरे लिये ये शब्द नया है आज पहली बार सुना है मेरे लिये अच्छी जानकारी है आभार्

निर्मला कपिला said...

क्षमा चाहती हूँ आपका नाम पहले गलत लिखा गया अभि्षेकजी की जगह अविनाश्जी लिखा गया

अभिषेक मिश्र said...

@ निर्मला जी,
इसमें क्षमा मांगने जैसी क्या बात है! ऐसा तो हो ही जाता है, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, धन्यवाद.

Mumukshh Ki Rachanain said...

जय हो, पर किसकी.

यदि वास्तविक जनमत चाहिए, जनता की जय हो चाहिए तो मतपत्र पर "इनमें से कोई नही" को भी मत मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए, तभी जनता निर्भीक हो कर गुप्त मतदान द्वारा अपनी राय जाहिर कर सकेगी और सापनाथ या नागनाथ को चुनने से बच पायेगी. पर ऐसा होने कौन देगा...................

चन्द्र मोहन गुप्त

Shreerung said...

घाध भङ्डर ऋषि के वंशज थे। उन्होने भड्डर ऋषि की संस्कृत कहावतें को हिन्दी में प्रस्तुत किया।इसे अकी जाति के जोशी भडडरी ब्राहमणों ने देश भर में लोकप्रिय बनाया तथा अपनी जीविका का आधार बनाया।

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