कम मतदान की अनिश्चितताओं से घिरती 15 वीं लोकसभा ने 16 तारीख की दोपहर से ही राहत की साँस लेनी शुरू कर दी होगी।
बहुमत और सरकार बनाने की प्रक्रिया चाहे जो रूप ले, मगर जनता ने अपनी ओर से 'माननीयों' को यथासंभव यह संकेत दे दिया है कि लोकतंत्र की प्रक्रिया में धार्मिक, जातीय और आपराधिक समीकरण उसे स्वीकार नहीं। ब्लैकमेलिंग को लालायित 'किंगमेकरों' को भी उनकी वास्तविक जगह दिखाने के पर्याप्त संकेत भेज दिए गए हैं। अगर मतदान का प्रतिशत थोडा ओर बढ़ जाता तो यह संकेत और भी बेहतर होते।
नई सरकार को मतदान के लिए घटती लोकप्रियता के सम्बन्ध में भी गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि लोकतंत्र का महापर्व एक खास सुविधासंपन्न वर्ग के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह जाये। पोस्टर, बैनर, दीवार लेखन जैसे माध्यम लाखों परिवारों की आजीविका के भी स्रोत थे। 60 % आबादी जो गांवों में बिजली के बिना रहती है, उसे अख़बारों ओर टीवी विज्ञापनों के द्वारा कितना 'जगाया' जा सकता है, विचारणीय है। इस चुनाव में अख़बारों ओर मीडिया की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल उठे हैं। लोकतंत्र की गरिमा को बचाने के लिए चुनाव आयोग को इस दिशा में भी ध्यान देने की जरुरत है।
इस चुनाव में राहुल गाँधी चाहे ब्रांड के रूप में ही पेश किये गए हों, मगर दूरदर्शिता इसी में है कि अगले चुनाव जो निश्चित ही उन्हीं के नेतृत्व में लड़े जायेंगे की सार्थक रणनीति पर अभी से ही मनन आरंभ हो जाये।
भारतीय मतदाताओं को शुभकामनाएं।
तस्वीर- साभार गूगल
11 comments:
rahul kisi bhi roop me ho magar varun se badiya sabit honge jai ho
सहमत हूं आपसे .. बढिया कहा।
जय हो ...
Sachmuch mai Jay ho...
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! जय हो!
"...कहीं ऐसा तो नहीं कि लोकतंत्र का महापर्व एक खास सुविधासंपन्न वर्ग के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह जाये।..."
aapko aisa kyun laga abhishek. agar aap poore desh mein shahri kshetron mein matdaan ka pratishat dekhein to payenge ki itne prachar prasar ke bavjood suvidha sampanna logon ka bada tabka abhi bhi vote dene nahin aaya. Mumbai ka kareeb 40% Patna 34% Ranchi 43% ye rajdhaniyon ka haal hai jabki gaanvon mein log isse kahin adhik sankhya mein tapti garmi mein chal kar aaye.
Yani itne prachar prasar ke baad bhi shahri matdaataon se kahin adhik gramin maddata apne adhikaron avam kartavyon ke prati sachet hain.
@ मनीष जी,
मेरा तात्पर्य चुनाव प्रचार की आधुनिक शैली का उस आम आदमी से ही दूर होने से है,जो कि वास्तविक मतदाता है.
जय हो, पर किसकी.
यदि वास्तविक जनमत चाहिए, जनता की जय हो चाहिए तो मतपत्र पर "इनमें से कोई नही" को भी मत मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए, तभी जनता निर्भीक हो कर गुप्त मतदान द्वारा अपनी राय जाहिर कर सकेगी और सापनाथ या नागनाथ को चुनने से बच पायेगी. पर ऐसा होने कौन देगा...................
चन्द्र मोहन गुप्त
अब तो जय ही जय है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
इतनी शीघ्र केवल कुछ बिंदु को छोड़ कर की अबकी बाहुबलियों की खाट खड़ी करने में यु.पी. बिहार की जनता ने एक सिरे से बढ़ चढ़ कर भाग लिया तथा किंग-मेकरों की गार्वोक्ति तोड़ी विशेष रूप से तीसरे चौथे पाँचवे छठे मोरचा छाप क्षेत्रीय दलों की | परंतु कुछ बड़े ख़तरनाक संकेत मुझे अप्रत्यक्ष रूप से 'बिटवीन दा लाईन्स ' दिख रहें अगर सभी राष्ट्रीय दल अभी से सचेत हो कर डैमेज कंट्रोल में नही लग जाते विशेष रूप से कांग्रेस एवं बीजेपी को अपने कुछ बॅड- बोले मूर्ख प्रवक्ताओं पर लगाम लगानी आवश्यक है ;नही तो राष्ट्र को, समाज को आगे क्या निकट भविष्य में ही बहुत क्षति उठानी पड़ेगीं |
सटीक चिंतन के लिये साधुवाद
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