Sunday, May 24, 2009

ये दिल्ली है मेरे यार


घुमने और जानकारियों का संग्रह करने के इच्छुक मेरे जैसे लोगों के लिए दिल्ली एक आदर्श जगह है। जिसने हिंदुस्तान को बार-बार बनते-बिगड़ते, बिखरते - उभरते देखा हो, वहां का चप्पा- चप्पा इतिहास के एक अध्याय का किस्सा सुना रहा होता है।
दिल्ली की महरौली में स्थित कुतुबमीनार की भी अपनी एक अलग ही दास्तान है। मामुलक वंश के कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 12 वीं सदी के अंत में यानि सन 1193 में आरम्भ करवाया गया, परन्तु वो केवल इसका आधार ही बनवा पाया। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसकी तीन मंजिलें और बढ़वायीं। 1368 ई। में फीरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अन्तिम मंजिल बनवाई। निर्माताओं की यह विविधता इसकी निर्माण शैली में भी झलकती है। मीनार की वास्तु कला में 20 प्राचीन जैन मंदिरों के ध्वन्शावशेष का भी इस्तेमाल किया गया है।
मीनार के परिसर में विश्व प्रसिद्ध 'लौह स्तम्भ' भी स्थित है, इस स्तम्भ को पीछे की ओर दोनों हाथों से छुने पर मुरादें पूरी होने की भी मान्यता है। मगर अब इसे लोहे की जाली से घेर दिए जाने के कारण यह प्रयास मनसः ही किया जा पा रहा है।
यहाँ आ कर इतिहास को एक ओर रख थोडी देर मैं गुम हो गया देव साहब और नूतन के साथ 'दिल के भंवर की पुकार में '। अनायास ही मैंने अपने मोबाइल में यह गीत ऑन कर दिया और थोडी ही देर में पूरा परिसर 'देवमय' हो गया था। यही तो जादू है देवसाहब की अदायगी और पुराने गीतों की मिठास का। इसी जादू में खोया मैं चल पड़ा अगले सफ़र की ओर- जिसके बारे में फिर कभी।
(टिप्पणी के रूप में कोई पॉडकास्ट पर इस गीत को सुना दे तो क्या बात हो!)
स्रोत- विकिपेडिया,
तस्वीर- साभार Google

10 comments:

P.N. Subramanian said...

मंदिरों के पत्थरों का प्रयोग वहां के मस्जिद के लिए किया गया होगा. २० से ज्यादा थे. वहां लिखा भी है.अच्छी जानकारी.

Vineeta Yashsavi said...

Apki baat bilkul sahi hai...dilli jagah hi aise hai ki jis ke har kone mai itihaas basata hai...

achhi jankari di hai apne...

नीरज मुसाफ़िर said...

हे अभिषेक मित्र!
क्या आप ये सलाह हमें भी दे रहे हो कि दिल्ली में घूमो. तो हमारा जवाब है "नहीं घूमेंगे".
वैसे मैंने अभी तक केवल लाल किला और चिडियाघर ही देखा है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दिल्ली दर्शन अच्छा लगा।

admin said...

अच्‍छा लगा आपके साथ घूमना।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब दिल्ली दर्शन...........दिल्ली तो दिल है देश का

RAJ SINH said...

हिन्दू और जैनमंदिर तोड़ कर उनका उपयोग मस्जिदें बनाने के लिए किया गया , ये खुद मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा किया गया उल्लेख है .

RAJ SINH said...

हिन्दू और जैन मंदिर तोड़ कर उनका उपयोग मस्जिदें बनाने के लिए किया गया ये खुद मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा किया गया उल्लेख है .है

Arvind Mishra said...

क्या समर्साल्ट है -कुतुबमीनार से सीधे सगीत सागर में छलांग !

Urmi said...

पहले तो मैं तहे दिल से आपका शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! मुझे दिल्ली बहुत पसंद है ! मैं तीन साल थी दिल्ली में और पहली नौकरी दिल्ली में किया! बहुत अच्छा लगा और अच्छी जानकारी भी दी है आपने दिल्ली के बारे में!

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