Monday, November 9, 2009

सूर्योदय के प्रदेश का सूर्योदय



जब तक यह पोस्ट आपके सामने होगी मैं पुनः फिल्ड में होऊंगा. साइबर कैफे पर निर्भरता ने पिछले फिल्ड वर्क की तस्वीरें तो आपतक पहुँचाने में बाधा जरुर डालीं, मगर वापस लौट इस कमी को पूरा करने का प्रयास जरुर करूँगा.
इस पोस्ट के साथ हैं मेरी फोटोग्राफी जीवन की कुछ अत्यंत कठिन तस्वीरों में से एक- 'अरुणाचल का सूर्योदय'. सूर्योदय के प्रदेश में इस दृश्य को कैमरे में कैद करना कितना मुश्किल है यह मैं ही जानता हूँ. यहाँ आने के एक महीने बाद सूर्य को पकड़ सका और ये छवियाँ कैद कर आप तक पहुंचा रहा हूँ. अगली मुलाकात तक नए सूर्योदय और नई शुरुआत की कामना के साथ-

Friday, November 6, 2009

ब्लॉग जगत के 2 स्तंभ

जिनके बिना अधूरी थी चर्चा
अटैचमेंट में इन्टरनेट का असहयोग फोटोज के साथ पोस्ट्स पर भारी पड़ रहा है. ऐसे में ब्लौगिंग जारी रह पा रही है इसमें कुह महत्त्वपूर्ण ब्लौगिंग हस्तियों का भी योगदान रहा है।

अपनी पिछली एक पोस्ट में मैंने अपने संपर्क में आये कुछ ब्लौगर्स की चर्चा की थी, यह चर्चा अधूरी है यदि इनमें दो और नामों को शामिल न कर लूँ. ये दो सज्जन हैं - हिंदी ब्लॉग टिप्स के आशीष खंडेलवाल जी और हिन्दयुग्म के शैलेश भारतवासी
आशीष जी औरों की नजर में चाहे जो हों, मैं तो उन्हें ब्लॉग जगत का 'मुग़ल - ऐ - आजम' मानता हूँ। उनके दिए टिप्स ने ब्लॉग जगत की तस्वीर बदलने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है.किसी भी तकनिकी समस्या के लिए उनकी सहज उपलब्धता हम ब्लौगर्स को कितनी राहत देती है इसकी अभिव्यक्ति सहज नहीं। उनकी तारीफ में शब्द भी कम हैं और मेरे पास समय भी. (क्योंकि आज पुनः फिल्ड जा रहा हूँ) इसलिए बस इतना ही.

शैलेश जी से मेरी मुलाकात 'रांची ब्लौगर्स मीट' में हुई थी। हिंदी ब्लौगिंग को लोकप्रिय बनाने में इनका भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। इस संबंध में किसी भी सहयोग के लिए वो सदा तत्पर रहते हैं. अपनी घुमक्कड़ नियती और साइबर कैफे आदि पर निर्भरता से मैं उनका ज्यादा लाभ नहीं उठा सका हूँ मगर वजह - बेवजह उन्हें परेशान करने का मौका हाथ से जाने नहीं देता.
आशा है हिंदी ब्लॉग जगत की ये विभूतियाँ इस ब्लॉग परिवार को आगे भी सदा यूँ ही समृद्ध करती रहेंगीं. शुभकामनाएं.

Monday, November 2, 2009

आज इन नजारों को तुम देखो...

(अरुणाचल का अनदेखा - अनछुआ सौंदर्य पहली बार सिर्फ आपके लिए)

जाते थे जापान, पहुँच गए चीन- मेरे लिए इस कहावत का भावात्मक ही नहीं, शब्दात्मक संबंध भी है.  कैसे! यह कभी और बताऊंगा. फिलहाल तो यही की अकादमिक जगत में कैरियर की संभावनाएं तलाशता अब कन्ष्ट्रक्शन के क्षेत्र में आ गया हूँ; और इस सुदूर अरुणाचल में 'आने वाले कल की बुनियाद' रख रहा हूँ. हाल के फिल्ड वर्क के अनुभवों की चर्चा अगली पोस्ट्स में करूँगा.

इस बार आप तक पहुंचा रहा हूँ इस सुदूरवर्ती क्षेत्र के अछूते और अप्रतिम सौंदर्य को झलकाती चंद तस्वीरें :

1. हुस्न पहाडों का
2. इजाजत हो तो इसे 'मन्दाकिनी फाल नाम दे दूँ ?
3. झर-झर झरते पड़ी झरने
4. नवयौवना नदी की अल्हड़ मस्ती

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