Sunday, April 4, 2010

पहेली सुधार सहित



अरविन्द मिश्र जी के सुझाव को स्वीकार कर, तस्वीर को और स्पष्ट करने का प्रयास किया है। डॉ साइबर कैफे में तस्वीर की सुस्पष्टता कभी- कभी स्पष्ट नहीं भी हो पाती है। इस बार पहेली लंबी नहीं खींचूंगा। कल इसका उत्तर भी आ जायेगा।

4 comments:

Arvind Mishra said...

I am restless to know its answer!

राज भाटिय़ा said...

यहाँ से जुड़ी मान्यताएँ :
ऐसी मान्यता है कि 'अंबुवासी मेले' के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सौर आषाढ माह के मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण बीत जाने पर चतुर्थ चरण में आद्रा पाद के मध्य में पृथ्वी ऋतुवती होती है।

इन चार दिनों के दौरान असम में भी कोई शुभ कार्य नहीं होता है। विधवाएँ, साधु-संत आदि अग्नि को नहीं छूते हैं और आग में पका भोजन नहीं करते हैं। पट खुलने के बाद श्रद्धालु माँ पर चढ़ाए गए लाल कपड़े के टुकड़े पाकर धन्य हो जाते हैं।
यह मान्यता है कि भगवान विष्णु के चक्र से खंड-खंड हुई सती की योनी नीलाचल पहाड़ पर गिरी थी। इक्यावन शक्तिपीठों में कामाख्या महापीठ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिए कामाख्या मंदिर में माँ की योनी की पूजा होती है। यही वजह है कि कामाख्या मंदिर के गर्भगृह के फोटो लेने पर पाबंदी है इसलिए तीन दिनों तक मंदिर में प्रवेश करने की मनाही होती है।

चौथे दिन मंदिर का पट खुलता है और विशेष पूजा के बाद भक्तों को दर्शन का मौका मिलता है। मान्यता यह भी है कि उस दौरान माँ कामाख्या पीठ अधिक जाग्रत हो जाता है इसलिए उस दौरान साधना का विशेष फल मिलता है।

एक मान्यता यह भी है कि रतिपति कामदेव शिव की क्रोधाग्नि में यहीं भस्म हुए थे। कामदेव ने अपना पूर्वरूप भी यहीं प्राप्त किया इसलिए इस क्षेत्र का नाम कामरूप पड़ा।

हठयोगी

इस बात का उल्लेख कल्कि पुराण में है। साधु और तांत्रिक मंदिर के आसपास की वीरान जगहों और कंदराओं में साधना में लीन रहते हैं। उस दौरान चार दिनों के लिए मंदिर का पट बंद रहता है और चार दिन बाद पट खुलने पर पूजा-अर्चना के बाद ही श्रद्धालु लौटते हैं।

मुंबई, अहमदाबाद, नागपुर के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के लाखों लोग जुटते हैं। हिंदू समाज में रजोवृति के दौरान शुभ कार्य नहीं होता है इसलिए इन चार दिनों के दौरान असम में भी कोई शुभ कार्य नहीं होता है।

विधवाएँ, साधु-संत आदि अग्नि को नहीं छूते हैं और आग में पका भोजन नहीं करते हैं। पट खुलने के बाद श्रद्धालु माँ पर चढ़ाए गए लाल कपड़े के टुकड़े पाकर धन्य हो जाते हैं। मान्यता है कि इस लाल कपड़े का अंश मात्र मिल जाने से सारे विघ्न दूर हो जाते हैं।

अभिषेक मिश्र said...

राज जी ,
इस बेहतरीन जानकारी के लिए हार्दिक धन्यवाद.

P.N. Subramanian said...

आज आभी अभी ही दक्षिण प्रवास से लौटा हूँ. ऐसी मूर्तियाँ मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भी पायी जाती हैं. परन्तु उनका सर नहीं होता. उसकी जगह कमल का फूल होता है. इसे लज्जा गौरी की संज्ञा दी गयी है. राज भाई साहब ने तो अच्छी जानकारी दे ही दी है.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...