Tuesday, February 3, 2009

सरस्वती पूजा और विद्यार्थी

     सरस्वती पूजा सोल्लास संपन्न हो गई. मगर अपने पीछे फ़िर छोड़ गई यह प्रश्न भी कि क्या पूजा के नाम पर युवा वर्ग इस पर्व के संदेश को आत्मसात कर पा रहा है. माँ की विदाई के समय जो भोंडा व्यवहार इन 'विद्यार्थियों' द्वारा दिखाया जाता है उसे देख क्या उनकी अपनी माँ को गर्व महसूस होता होगा! तब फ़िर माँ शारदे पर क्या गुजरती होगी!
     और विसर्जन के नाम पर स्थानीय नदियों और तालाबों की जो शामत आती है, क्या उस और देश के इस प्रबुद्ध भविष्य को नहीं सोचना चाहिए. क्या यह सम्भव नहीं कि मूर्तियों की जगह तस्वीरों का या ऐसे किसी वैकल्पिक माध्यम का प्रयोग किया जाए जिससे जल प्रदुषण में एक वर्ग की हिस्सेदारी आंशिक रूप से ही मगर कम तो हो.
    माँ शारदे सभी को सद्बुद्धि दें.

9 comments:

निशा said...

आपने सही कहा

Vineeta Yashsavi said...

Aapki baat bilkul sahi hai.

रंजना said...

Bahut sahi kaha aapne....ham jis daal par baithe hain usi ko kaat rahe hain.
Maa sharda sabko sadbuddhi den.

निर्मला कपिला said...

आपने बिलकुल सहि कहा है मा शारदे से यही प्रारथना है कि इन्हें सद बुधी दे

Udan Tashtari said...

अच्छा विचार. इस दिशा में मंथर गति से आवाजें उठ रही हैं..देखिये कब तक मूर्तरुप लेती हैं.

नीरज मुसाफ़िर said...

अभिषेक जी,
सही कह रहे हो.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर विचार, क्या जरुरी है हर साल मां का विस्र्जन?? हां अगर जरुरी है तो क्यो नही उसी नदी की रेत से बनाई जाये एक मुर्ती ? हे मां हम सब को सद्द बुद्धि दे.
धन्यवाद

Science Bloggers Association said...

एक सामयिक और विचारवान दिशा है। मैं आपकी इस सोच को सलाम करता हूं।

Anonymous said...

main aapke vichaar se bilkul sahmaat hu...

Kabhi fursat mein mere blog par aayiye aur mera maargdarshan kijiye .
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