Wednesday, April 1, 2009

इतिहास के आईने में 1st अप्रैल

1st अप्रैल को मनाये जाने की शुरुआत कब से हुई यह अस्पष्ट है, किन्तु सर्वाधिक मान्य मत यह है कि 1584 ई. में फ्रांस के चार्ल्स IX ने ग्रेगरियन कैलेंडर को लागू किया. इसने पूर्व में प्रचलित न्यू इयर सप्ताह जो 25 मार्च-1 अप्रैल तक आयोजित होता था, को स्थानांतरित कर दिया. सूचना की धीमी रफ़्तार तथा कुछ अपनी परम्पराप्रियता की वजह से भी कई लोगों ने पुराने कैलेंडर के अनुसार ही नव-वर्ष मनाना जारी रखा. इन लोगों के उपहास के लिए इन्हें मूर्ख समझा गया, और 1st अप्रैल ने कालांतर में 'अप्रैल फूल'  का रूप ले लिया.
 
 स्वस्थ मनोरंजन के इस अवसर पर एक-दुसरे को मूर्ख  बनाना एक परंपरा बन गई. आगे चलकर मूर्ख बनाने की समय सीमा भी निर्धारित कर दी गई, जो दोपहर तक ही थी. आज भी अमूमन इसका पालन होता है.

मगर यह समय यह विचार करने का भी है कि क्या पुराने कैलेंडर की तिथि और हमारे नव संवत की तिथि की निकटता और इनपर नए कैलेंडर की वरीयता तथा होली पर मूर्ख सम्मेलन जैसे दृष्टान्त में साम्य कुछ गौर से सोचने की जरुरत महसूस नहीं कराती है!
 
तस्वीर: साभार गूगल

9 comments:

रूपाली मिश्रा said...
























































































































Vineeta Yashsavi said...

Saal mai ek din aisa bhi hona chahiye...

achhi jankari...

रंजू भाटिया said...

रोचक लगी यह जानकारी

Ashish Khandelwal said...

पहली अप्रेल की जानकारी रोचक लगी.. आभार

संगीता पुरी said...

अच्‍छी जानकारी दी आपने ... इस मौसम में हो सकता है ... लोगों को मूर्ख बनना अच्‍छा लगता हो।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने धन्यवाद

shubhAM mangla said...

हौसला अफ़जाई के लिए दिल से शुक्रिया. ये नयी post देखियेगा, बात सच्ची और अच्छी लगे तो आवाज़ में आवाज़ मिलाइयेगा..

http://shubhammangla.blogspot.com/2009/04/breaking-news.html

Science Bloggers Association said...

रोचक इतिहास।

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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

Arvind Mishra said...

एक आईना रंजना (रंजू ) जी ने भी दिखाया है उसे भी देख लीजियेगा !

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