Monday, August 24, 2009

अलविदा बनारस, अल्पविराम ब्लौगिंग

कहते हैं सच्चे दिल से किसी को चाहो तो सारी कायनात उसे तुम से मिलाने की कोशिश में लग जाती है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। M. Sc. के बाद ही बनारस छोड़ने की परिस्थितियां बनीं थीं मगर कहानी अभी बाकी थी। बनारस में पिछले लगभग 2 वर्ष वास्तविक जगत के सन्दर्भ में तो ऐसे रहे जिन्हें अपने जीवन की किताब से खुरच-खुरच कर मिटा ही देना चाहूँगा। मगर आभासी जगत ने वो दिया जिसने कहीं मेरे वास्तविक जीवन को भी स्पर्श किया है। ब्लॉगजगत के माध्यम से मेरी रचनात्मक प्रवृत्ति न सिर्फ जीवित रह पाई, बल्कि इसे एक नया आयाम भी मिला। विज्ञान लेखन को लेकर बचपन से ही रुझान था, जिसे 'साइंस ब्लौगर्स असोसिएशन' और 'कल्कि ओं' से एक नई दिशा मिली। इस सन्दर्भ में श्री अरविन्द मिश्र जी के मार्गदर्शन और प्रोत्साहन ने मेरी एक विज्ञान कथा को 'विज्ञान प्रगति' तक भी पहुँचाया; जो इसके अगस्त, 09 अंक में प्रकाशित हुई।

गांधीजी के प्रति मेरे जुडाव के प्रतीक ब्लॉग 'गांधीजी' को भी सभी ब्लौगर्स का स्नेह और समर्थन मिला।

'मेरे अंचल की कहावतें', 'कबीरा खडा बाजार में' , 'भड़ास' और अब डा० अमर कुमार जी के 'वेबलोग' आदि से भी जुडाव संभव हो सका; जिनसे अपनी भावनाएँ अन्य मंचो से भी साझा कर सका।

मगर यथार्थ जगत में सबकुछ इतना सहज नहीं चल रहा था। बीच में एक बार फिर बनारस से सब-कुछ छोड़ वापस चल देने की तैयारी थी, मगर बाबा की नगरी में इंसानों की मर्जी चलती तो आज बनारस, बनारस रह पाता!

बाबा ने कुछ दिन और रोक लिया और कुछ नाटकीय परिदृश्य के बाद उन्हीं की आज्ञा से अरुणाचल प्रदेश जा रहा हूँ। अब वहां देश के लिए हाईड्रो - पॉवर उत्पन्न करने में अपना योगदान देने का प्रयास करूँगा। कभी - न - कभी आभासी दुनिया और अपने कल्पित ख्वाबों से बाहर निकल यथार्थ से मोर्चा लेना ही था। शायद अब वो समय आ गया है। आभासी जगत में जिस तरह आपकी शुभकामनाएं साथ रहीं, आशा है वो यथार्थ जगत में भी उतनी ही प्रभावी रहेंगीं।

किसी अनचाही परिस्थिति में भले ही शारीरिक रूप से बनारस छुट रहा हो, मगर अब यह मेरे व्यक्तित्व का एक अंग भी बन गया है, जिसे कोई मुझसे जुदा नहीं कर सकता। इसी तरह ब्लौगिंग भी उस आग से कम नहीं जो 'लगाये न लगे, बुझाये न बुझे'। तो शायद एक बार को बनारस को तो अलविदा कह दूँ मगर ब्लौगिंग - 'उहूँ, लागी छुटे ना'. तो जब तक संभव हुआ पोस्ट्स आती रहेंगीं, मगर अचानक संपर्क टूट जाये उससे पहले ही वादा - 'फिर मिलेंगे',

क्योंकि 'कहानी अभी बाकी है.....'

20 comments:

L.Goswami said...

पूरी बात तो बताते जाते ..पोस्ट टाइटल में खैर की आपने "अल्पविराम" लिखा ..वरना मैं तो डर ही गई थी :-)..दुबारा वापसी का इन्तिज़ार रहेगा..हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं.

Anonymous said...

हमारी भी शुभकामनाएँ

इंतज़ार रहेगा आपके ब्लॉगजगत में सक्रिय होने का

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

शुभकामनाएँ!
आपका इंतज़ार रहेगा!

Sachi said...

आपकी ब्लोग्स का इंतज़ार रहेगा.
कई बार ज़िन्दगी में बुरे दिन देखने पड़ते है, नहीं तो अच्छे दिनों के महत्व को हम कैसे समझेंगे.ब्लॉग्गिंग पर अपने अनुभव भी बांटिये, इसी का नाम तो जिन्दगी है...
अरुणाचल प्रदेश में कहाँ, आपने बताया नहीं ? सुन्दर इलाका है, बहुत घूमियेगा, आने वाले ५-६ साल में बहुत कुछ बदल जायेगा |
शुभकामनाओं सहित,
साची

Gyan Dutt Pandey said...

जरूर, फिर संपर्क होगा। अरुणांचल तो दूर नहीं। और जो अनुभव आप लेंगे वह बाट जोह कर सुनने/पढ़ने की चीज है। इन्तजार रहेगा।

Udan Tashtari said...

हमारी भी शुभकामनाएँ!
आपसे सुनने का इंतज़ार रहेगा!

Yunus Khan said...

अभिषेक शानदार जगह जा रहे हो । उम्‍मीद है कि हमें अरूणाचल के बारे में बहुत कुछ बताओगे । रेडियो के लिए भी और ब्‍लॉग पर भी । पर एक बात दिलचस्‍प होगी । अब तुम्‍हारा पेशेवर जीवन शुरू हो रहा है । चुनौतीपूर्ण समय कर रहा है इंतज़ार । शुरूआत अकसर दिक्‍कतों भरी होती है । असंख्‍य शुभकामनाएं ।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

शुभकामनाएँ।
विराम को अल्प ही रखिएगा।

संगीता पुरी said...

ईश्‍वर की इच्‍छा होगी .. तो ब्‍लागिंग से अल्‍प विराम ही होगा .. जल्‍द ही हमलोग आपको यहां पाएंगे .. नए जीवन के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएं !!

Himanshu Pandey said...

नवीन अनुभव परिपक्व-पुष्ट करते हैं, मन नवीन अनुभूतियों से संपृक्त होता है ।
शुभकामनायें । अल्पविराम ही है न !

मुनीश ( munish ) said...

All the best Abhishek ! Have a safe journey and memorable time in Arunachal .

रंजू भाटिया said...

शुभकामनाएं आपके लिखे का इन्तजार रहेगा

Vineeta Yashsavi said...

Bahut Bahut Shubhkaamnaye...

post ka intzaar rahega...

apni nayi life ki baare mai bhi likhiyega...

Creative Manch said...

आपसे सुनने का इंतज़ार रहेगा
हमारी शुभकामनायें


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Arvind Mishra said...

जीवन से साक्षातकार तो करना ही है अभिषेक -उत्तिष्ठ जागृत ......! हाँ कल,२६-को , शाम को ही घर आयें !

roushan said...

भूलियेगा नहीं की वापस ब्लॉग्गिंग शुरू करनी है .
और हाँ बाबा तो बाबा हैं जब जी करेगा बुलाकर दुलार लेंगे
कुछ फोटो खींचते रहिएगा कैमरा टांग लिया है तो और ब्लॉग पर जब भी मौका मिले डाल दीजियेगा

नीरज मुसाफ़िर said...

अभिषेक जी,
अपना नया नंबर दे देना.
और नेट से कुछ फोटो भी भेजते रहना. अरुणाचल तो एक अनछुवा राज्य है, खूब मजे उडाओ. फिर वहां के लोगों और संस्कृति के बारे में बताना.
और जल्दी ही ये भी बता देना कि अरुणाचल में रहना-खाना कहाँ हो रहा है?

डा० अमर कुमार said...


सो तो सब ठीक है, पर ब्लाग लिखने में अल्प विराम ही रहे, पूर्णविराम से पहले ही इस ज़हाज़ का पँछी यहीं दिखना चाहिये । वेबलाग पर कुछ योगदान दो, भाई ।
मैंनें आपकी स्वस्थ दृष्टि के चलते ही तो, आपसे अपेक्षा की थी, और आप हो कि एक झोला टाँग कर फोटू खिंचायें, इहाँ दिखाये और चल दिये ?

We Cognize said...

AMine aapkiyeh post aaj hi dekhi hai. Jaankar dukh hua ki aap ab regular blogging nahi karenge. Aapki post se kuch gyaan hume bhi mil jaata tha.

Umeed hai... aapki post milti rahengi :)

My good wishes with you .

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

अभिषेक ,
अरुणांचल और व्यवहारिक जीवन की यह यात्रा सदैव मंगलमय और शुभ हो |
समर जीत सिंह रतन
09026382831

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