धार्मिक स्थलों के नाम पर भूमि के अवैध अतिक्रमण के प्रयासों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका सराहनीय है। कोई भी धर्म या संप्रदाय धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर नाजायज लाभ उठाने के लोभ के संवरण से आज पीछे नहीं है। व्यक्तिगतरूप से मैं भी यह महसूस करता हूँ कि अनाधिकृत रूप से निजी हितों की पूर्ति के लिए पूजन स्थलों के नाम पर अर्जित की गई भूमि पर ईश्वर निवास कर ही नहीं सकते। कोई भी शिवलिंग या धार्मिक चिह्न स्थापित कर अच्छी-खासी भूमि का अधिग्रहण हम सभी ने देखा है, हद तो तब हो जाती है जबकि अपने निवासस्थानों जिनकी बाउंड्री अमूमन अतिक्रमित ही होती है को बचाने के लिए बाहरी कोने में एक छोटा मंदिर या आराधनालय स्थापित कर दिया जाता है। इसी भगवान की व्यक्तिगत उपासना ही उन्हें नगरनिगम के अतिक्रमण विरोधी अभियान से बचाने में ढाल का काम देती है। इस पापकर्म में जबरन भागी बनवाये जाते प्रभु के ह्रदय पर क्या गुजरती होगी, भला सोचा है उनके भक्तों ने।
कई बार काफी सावधानीपूर्वक चलाये जा रहे अभियानों में भी एक छोटी सी असावधानी जैसे 'प्रभु की एक ऊँगली का टूटना' जैसी घटनाओं ने बड़े दंगों का रूप भी ले लिया है। ऐसी घटनाओं का लाभ उठाने में कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं रहे हैं।
जरुरत है कि सभी धर्मों के प्रतिनिधि और राजनीतिक दल व्यक्तिगत हितसाधन के इस शर्मनाक प्रयास के विरोध में एकजुट हों। अतिक्रमित धर्मस्थलों को उपासना के लिए अयोग्य घोषित किया जाये और भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कर उसका उपयुक्त उपयोग सुनिश्चित किया जाये। साथ ही साथ धार्मिक आयोजनों के नाम पर सावर्जनिक स्थलों के असंतुलित अतिक्रमण के विरुद्ध भी जनमानस बनाये जाने की जरुरत है।
10 comments:
जी बिलकुल पते की बात की है आपने -सहमत !
जरुरत है कि सभी धर्मों के प्रतिनिधि और राजनीतिक दल व्यक्तिगत हितसाधन के इस शर्मनाक प्रयास के विरोध में एकजुट हों। अतिक्रमित धर्मस्थलों को उपासना के लिए अयोग्य घोषित किया जाये और भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कर उसका उपयुक्त उपयोग सुनिश्चित किया जाये। साथ ही साथ धार्मिक आयोजनों के नाम पर सावर्जनिक स्थलों के असंतुलित अतिक्रमण के विरुद्ध भी जनमानस बनाये जाने की जरुरत है।
इस सुझाव का स्वागत करता हूँ।
अच्छा सुझाव दिया है आपने .. सहमत हूं आपसे !!
सारे हनुमान भक्त और सरे पीरबाबा के दरवेश बेरोजगार हो जायेंगे।
आप घोर पाप के भागी होंगे मित्रवर! :)
हम आपसे पूर्णतः सहमत हैं. ऐसे स्थल चाहे किसी भी धर्म से जुडा हो, भावी विस्तार में भी बाधक बनते हैं.
Mai apse puri tarah sahmat hu aur is tarah ki atikraman ka pura virodh bhi karti hu fir wo chahe bhagwaan ki naam pe hi ku na kiye jaye...
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बिल्कुल सही फ़रमाया आपने! मैं आपकी बातों से सहमत हूँ! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
आपने बहुत सही बात लिखी है...वैसे मेरा मानना है की इश्वर मंदिरों में मिलता ही नहीं है...उसे चार दिवारी में रहना पसंद ही नहीं लेकिन हम उसके नाम पर भव्य मंदिर बनवाते हैं और उसकी आड़ में व्यवसाय करते हैं...जितने मंदिर हैं अगर उनके स्थान पर घर या स्कूल बनवाये जाएँ तो शायद देश में हर एक को सर छुपाने के लिए एक अदद छत नसीब हो सकती है..अशिक्षा दूर हो सकती है...शायद...नीरज
Chintaa kee baat. Is par rok lagnaa chaahiye.
{ Treasurer-T & S }
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