A Common Indian to Anna Hazare
आदरणीय अन्ना जी,
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,
मैं आपके कार्यों का प्रशंसक हूँ, और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आपके संघर्ष का समर्थन करता हूँ. देश के करोड़ों आम आदमी की तरह मैं भी इस देश में एक ऐसी व्यवस्था चाहता हूँ जो इस देश को अब असह्य हो चुके भ्रष्टाचार से राहत दिला सके.
इस दिशा में व्यक्तिगत रूप से आपके अब तक के प्रयास काफी सटीक रहे हैं. सरकार चाहे-अनचाहे आपकी मांगों के दबाव में ही सही मगर एक लोकपाल के लिए सहमत हुई है. मगर सामूहिक प्रयास सामूहिक जिम्मेदारी भी मांगते हैं. आप शुरू से ही अपनी टीम के सदस्यों में से कुछ के प्रति अपनी जानकारी की संपूर्णता से विभीन्न परिस्थितिवश इंकार करने को विवश हो चुके हैं. अब जब आपके साथ लाखों की भीड़ होगी क्या आप उसके व्यवहार या प्रतिक्रिया का आकलन कर सकते हैं. भीड़ का मनोविज्ञान अलग होता है. अनियंत्रित, गैरअनुशासित, अप्रशिक्षित भीड़ ज्यादा समय सब्र नहीं रख सकती. इसका अनुभव गांधीजी को भी चौरीचौरा में हो चुका था. और इसके बाद वो भी 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' या प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं के साथ आंदोलन का समर्थन करने लगे थे. उन्मादी भीड़ सिर्फ़ ध्वंश करती है सृजन नहीं और इसका एक और ज्वलंत उदहारण 'बाबरी मस्जिद कांड' तो है ही. 'क्रिया-प्रतिक्रिया' के दंगे भी भीड़ की इसी वहशी ताकत को ही दर्शाते हैं. आप सिर्फ़ ऐसे संभावित हादसों को शरारती तत्वों की साजिश बता कर निर्लिप्त नहीं रह सकते.
गांधीजी के दो आन्दोलनों के बीच योजना और कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त समय रहता था. गांधीजी की राह पर चलने का दावा करने वाले आपने क्या अपने आंदोलन का 'मीडिया मैनेजमेंट' के अलावे 'पब्लिक मैनेजमेंट' पर भी ध्यान दिया है !
एक उत्सुकता और भी है. गांधीजी अपने आंदोलन कैलेण्डर या पंचांग देखकर नहीं करते थे, ताकि अंग्रेजों की 60 वर्ष पहले की किसी कारस्तानी से तिथी का मिलान कर इतिहास को दोहराने का चमत्कारिक संजोग दिखलाने की नौबत आये. आपतो जानते ही हैं कि दोहराया हुआ इतिहास मात्र एक प्रहसन होता है. तो निवेदन है कि आपके मूवमेंट का थिंकटैंक भी आपातकाल, अगस्त क्रांति ..... जैसी ऐतिहासिक तिथियों का प्रहसन न बनाकर किसी मौलिक और प्रभावशाली स्क्रिप्ट पर अमल करे. अपनी स्वतंत्र इमेज और यादगार डेट विकसित करें, उधार न लें.
गांधीजी को आप मुझसे ज्यादा जानते और समझते हैं. अतः उनकी 'साध्य' और 'साधन' की शुचिता की भावना को अपने आंदोलन में भी शामिल करते हुए कोई सार्थक उपलब्धि हासिल कर पाएं और अपने आंदोलन को 'हाइजैक' न होने देते हुए इसे संपूर्ण क्रांति का हश्र न पाने देने में सफल हों यह इस देश की भी आकांक्षा है.
यह देश अब जेपी के बेनकाब हो चुके 'अनुयायियों' की दूसरी पीढ़ी को पल्लवित होते देखने और झेलने को अभिशप्त नहीं होना चाहिये.
यूँ तो आप स्वयं ही सब समझते हैं.
धन्यवाद.
भवदीय
एक अन्य आम भारतीय.
14 comments:
स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
क्या सरकार शान्ति की बात सुनाने को तैयार है?
स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ.
क्यों ऐसा महसूस होने लगा है कि आन्दोलन व्यक्तिगत अहमन्यता की ओर मुड़ गया है
सरकार बनाम हम पांच न कि सार्थक बात
सही कहा रौशन जी आपने. मैंने यहाँ जंतर-मंतर और इण्डिया गेट आदि पर 'युवाओं' की भीड़ को देखा है. यह .राकेश ओम प्रकाश मेहरा और 'रंग दे बसंती' ..... से प्रेरित भीड़ है, आंदोलन के लिए प्रशिक्षित नहीं. और कानून पर थोड़ी सहमति और संशोधन की गुंजाईश तो होती ही है.
आज शाम को सात बजे अन्ना की प्रेस कांफ्रेस देखिये
स्वतंत्र दिवस की शुभकामनाये
is mude ko leker sab ki ray apni apni hai per aap ne jo manav jati ki maovrti ki baat kahi vo bahut sahi hai.
मनुजी,वाकई राजनीति और मुद्दे अपनी जगह हैं, मगर आंदोलन के लिए कुछ बुनियादी चीजों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
रेखा जी, आपके सुझावानुसार प्रेस कॉन्फ्रेंस देखी. आपने भी महसूस किया होगा उत्तेजक टिप्पणियों पर उपस्थित लोगों के उत्साह को. :-)
आपने उपयुक्त और गंभीर विचार रखे हैं ..सोचता हूँ!
सुचिता नहीं शुचिता
त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने का धन्यवाद अरविन्द जी.
आपने एक अलग ढंग से स्थिति का जयज़ा लिया है। आपके विश्लेषण से सहमत हूं। आपको भी स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।
समर्थन के शोर-शराबे में प्रतिकूल बात कह पाना अपने आप में जीवट की बात है। आपने वह कर दिखाया है। अच्छा लगा। बधाइयाँ और अभिनन्दन। मेरी यह पोस्ट आपको अपनी बात के आसपास ही लगेगी - http://akoham.blogspot.com/2011/08/blog-post_06.html
your take on this is worth a read !!
आप सभी के बहुमूल्य विचारों का आभार. आपकी शुभकामनाओं की साथ मेरी यह पोस्ट आज के 'दैनिक हिंदुस्तान' में भी प्रकाशित हुई है. धन्यवाद.
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