नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) के 13 वें ‘भारत रंग महोत्सव’ में कल ‘कमानी’ रंगालय में एक चीनी नाटक ‘अमोरौस लोटस पैन’ ( The Amorous Lotus Pan ) का मंचन हुआ. ‘सेंट्रल अकादमी ऑफ ड्रामा’, चीन द्वारा प्रस्तुत प्रो. चेन गेंग द्वारा निर्देशित यह नाटक चीन के एक प्रमुख शास्त्रीय उपन्यास ‘ आउटलाज ऑफ दि मार्श ‘ की एक पात्र पैन जिनलियन पर आधारित है.
स्त्री मनोविज्ञान की पड़ताल करते इस नाटक में नियति और व्यक्तित्व के बीच होने वाले अंतर्द्वंद और मनुष्य पर इसके प्रभाव को सामने लाने का प्रयास किया गया है.
नायिका पैन जिनलियन अल्पायु में ही अनाथ हो जाती है. उसे एक अमीर व्यक्ति झेंग दाऊ को बेच दिया जाता है, जो उसे अपनी उप पत्नी बनाना चाहता है. पैन द्वारा प्रस्ताव ठुकरा दिए जाने पर, झेंग उसके साथ बलात्कार कर सजा के रूप में वुडा नाम के बौने को सौंप देता है. वुडा एक कायर, दब्बू और यथास्थितिवादी इंसान है, जिसके साथ पैन की जिंदगी में कोई आकर्षण रह ही नहीं जाता है. वो, वुडा के छोटे भाई वु सौंग जो काफी बहादुर और आकर्षक है; से प्रेम करने लगती है. मगर वो उसकी भावनाओं को स्वीकार नहीं करता. अंततः वह एक अमीर व्यक्ति ‘ झिमैन किंग ‘ से जुड जाती है. पति के तलाक देने पर राजी न होने पर किंग के उकसावे पर पैन वुडा को जहर दे देती है. वु सौंग अपने भाई की हत्या के प्रतिशोध में पैन द्वारा आत्मस्वीकृति और उसे इस स्थिति में पहुँचाने में अपनी भूमिका को देखता हुआ भी पैन की हत्या कर देता है. अंत में पैन का अभिनय कर रही प्रतिभाशाली अभिनेत्री – ‘ली येकिंग’ दर्शकों के समक्ष एक प्रश्न रखती है कि –
“ यदि वह पैन जिनलियन होती और ठीक इसी तरह के दुर्भाग्य से संघर्ष कर रही होती, तब वह अपने लिए क्या चुनाव करती ? “
यह सवाल वर्त्तमान वैश्विक एकरूपता के इस युग में प्रत्येक स्त्री सहित संपूर्ण समाज से किया गया एक सवाल भी है. है इसका कोई जवाब आपके पास ???
ये नाटक इस मायने में भी खास है कि यह पुनः रेखांकित करता है कि स्त्री मनोविज्ञान को समझने में अपनी असमर्थता को स्वीकार करने में सभी धर्मों के प्राचीन आख्यानों; भारतीय, रोमन, ब्रिटिश आदि सभी नाटकों में भी एक अद्भुत साम्य है. इस नाटक का स्रोत और यह नाटक भी इसी श्रृंखला में एक कड़ी लगते हैं.
यह नाटक हमें चीनी समाज को जरा पास से देखने का एक अवसर भी देता है, और कहीं न कहीं यह सोच भी जगाता है कि अपनी संस्कृति और समाज को वैश्विक प्रभाव से संरक्षित रखने की इसकी अपनी भावना और शैली है; जिसका हमें सम्मान करना चाहिए. बेवजह उसे सभ्यता और मानवाधिकार जैसे पाठ पढाने का नैतिक अधिकार शेष विश्व के पास भी नहीं ही है. चीन जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार करते हुए उसके साथ परस्पर सामंजस्य के नए स्रोत भी ढूंढने चाहिए. और निश्चय ही कला व संस्कृति की इसमें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.
11 comments:
इस प्रकार की प्रस्तुतियां नि:संदेह दुनिया के विभिन्न देशों में हो रहे प्रयोगों से परिचय करवाती हैं
बहुत सुंदर ..
कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग //shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक दृष्टी डालें .
Apki post par ke lagta hai ki ek behad samvedansheel mudde ko is natak dwar behad gambhirta ke sath sabke samane laya gaya hai...
ऐसी अभिव्यक्ति नाटक या प्रस्तुति किसी भी समाज के यथार्थ को सामने रखती हैं....... बेहद उम्दा पोस्ट
aaj ke samaj ko bahut is prakaar kalatamk roop mein dershane ke liye sabse pahele nayika ko badhai.un ka yeh preshn ki agar who un ki jagha hoti to kya kerti bahut se aur prashn aur vichar khade kerta hai, prantu mera manna hai ki un ke sath jo hua who accha nahi hua lekin unhone apne swarth ke liye ek bekasoor ko zaher diya yeh unhone sahi nahi kiya .kyoki cheeni sabhayata ka to pata naahi per hamer bhartiye samaj mein ek nari apne pati ko zaher nahi deti chaye khud kitni hi parasthithiyo se jaujati rathi .
bouth he post kiya aapne.... nice blog
keep visiting My Blog Thanx...
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अभिषेक भाई, इस नाटक से परिचय कराने का शुक्रिया।
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ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
ये वक्त रंगमंच के बदलाव और छात्पताहत का दौर है. एक से एक उत्कृष्ट प्रस्तुतियां देखने को मिलती हैं.
आपके माध्यम से एक और बेहतरीन प्ले का पता चला
आभार
बहुत जटिलता भरी प्रस्तुति है.....मगर है प्रभावकारी !
बहुत सुंदर जानकारी
Log kitni asani se ek ladki ke bhagya vidhata ban jate hain..fir chahe wo Bharat ho ya China...har samaj ne stree ke naam bas sangharsh hi likh diya hai
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