Saturday, February 5, 2011

शतकीय पोस्ट के साथ प्रेम के सफर पर (1)



जी हाँ, इस पोस्ट के द्वारा एक नई श्रृंखला की शुरुआत के साथ ही इस ब्लॉग पर मेरे पोस्ट्स की सेंचुरी भी पूरी हो रही है. अब तक के इस सफर में आप लोगों के साथ देते जाने का धन्यवाद.

तो अब इस श्रृंखला में आपको ले चल रहा हूँ अपने साथ एक प्रेममय सफर पर.

यूँ तो प्रेम का कोई देश, काल और सीमाएँ नहीं होतीं, मगर प्रकृति के उद्दात स्वरुप को देखते हुए वसंत को ही प्रेम के माह के रूप में सवाभौमिक मान्यता प्राप्त है. प्रेम का कोई निश्चित स्वरुप भी नहीं है, यह तो सिर्फ एक भावनात्मक एहसास है, जो किसी में भी, कभी भी उभर सकता है. सत्य और काल्पनिक, सफल - असफल प्रेम कथाओं की एक वैश्विक परंपरा रही है, मगर यहाँ यह बात याद रखने की जरुरत है कि हार-या-जीत प्रेमियों कि हुई है - प्रेम की नहीं. प्रेम तो सिर्फ प्रेम है - हार/जीत, सही/गलत जैसे मानकों से कहीं ऊपर.

इस श्रृंखला में मेरा प्रयास रहेगा ऐसी प्रेम स्मृतियों को याद करने का जिन्होंने हमारी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को कहीं-न-कहीं से प्रभावित किया है.

हमीदा बानो -हुमायूँ

हमीदा बानो का नाम पहले देने का कारण उस अमर प्रेम की श्रृंखला के पहले अध्याय को स्वीकार करना है जिसकी परिणति दुनिया को प्रेम की प्रतिनिधि रचना 'ताज' के रूप में मिली.


हुमायूँ का जीवन संघर्ष किसी से छुपा नहीं है, मगर वो हमीदा ही थीं जिसने हर परिस्थिति में उसका साथ निभाया. हुमायूँ की तरह हमीदा का जीवन भी दुरूह और कठिनतम यात्राओं से भरा रहा, मगर वो हर कदम पर हुमायूँ के साथ रही. पत्नी और साम्राज्ञी की भूमिका निभाते हुए भी हमीदा का एक प्रमुख योगदान एक ऐसी माँ के रूप में याद किया जायेगा जिसने अकबर जैसी हस्ती को जन्म दिया और उसके व्यक्तित्व के विकास पर अपनी गहरी छाप छोड़ी.

हमीदा के व्यक्तित्व का एक उल्लखनीय पहलु तब सामने आता है जब हमें पता चलता है कि उसने प्रारंभ में बाबर की बहू और हुमायूँ की पत्नी बनने से प्रारंभ में इनकार कर दिया था, मगर लगातार आग्रह और विशेषकर हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम के समझाने पर विवाह को रजामंद हो गईं. कहते है की उनकी आपत्ति इस बात को लेकर थी कि शहंशाहों के जीवन में स्त्रियों को समुचित स्थान और सम्मान नहीं मिलता. उस दौर में स्त्री के अधिकार और सम्मान के लिए आवाज उठाने की उनकी भावना को गुलबदन बेगम ने अपनी पुस्तक 'हुमायूँनामा' में इस रूप में वर्णित किया है कि -


"I shall marry someone; but he shall be a man whose collar my hand can touch, and not one whose skirt it does not reach."

हुमायूँ की मृत्यु के बाद उसकी याद और उसके प्रति Boldअपने प्रेम की अभिव्यक्ति का एक शाहकार है 'हुमायूँ का मकबरा' - जो कि भारतीय वास्तुकला पर फारसी प्रभाव का पहला उदाहरण बना.


इस ऐतिहासिक प्रेम कहानी को महबूब खान निर्देशित और अशोक कुमार - नर्गिश अभिनीत 'हुमायूँ' (1945) द्वारा सेल्युलाईड पर भी उतरा गया था.



चलते - चलते प्रसिद्ध कवि सोम ठाकुर जी की एक प्रेम कविता भी सिर्फ आपकी आपकी नजर :

लौट आओ


लौट आओ (मांग के सिंदूर) की सौगंध तुमको


नयन का सावन निमंत्रण दे रहा है।


आज बिसराकर तुम्हें कितना दुखी मन यह कहा जाता नहीं है।

मौन रहना चाहता, पर बिन कहे भी अब रहा जाता नहीं है।

मीत! अपनों से बिगड़ती है बुरा क्यों मानती हो?

लौट आओ प्राण! पहले प्यार की सौगंध तुमको

प्रीति का बचपन निमंत्रण दे रहा है।


रूठता है रात से भी चांद कोई और मंजिल से चरण भी

रूठ जाते डाल से भी फूल अनगिन नींद से गीले नयन भी

बन गईं है बात कुछ ऐसी कि मन में चुभ गई, तो

लौट आओ मानिनी! है मान की सौगंध तुमको

बात का निर्धन निमंत्रण दे रहा है।


चूम लूं मंजिल, यही मैं चाहता पर तुम बिना पग क्या चलेगा?

मांगने पर मिल न पाया स्नेह तो यह प्राण-दीपक क्या जलेगा?

यह न जलता, किंतु आशा कर रही मजबूर इसको

लौट आओ बुझ रहे इस दीप की सौगंध तुमको

ज्योति का कण-कण निमंत्रण दे रहा है।


दूर होती जा रही हो तुम लहर-सी है विवश कोई किनारा,

आज पलकों में समाया जा रहा है सुरमई आंचल तुम्हारा

हो न जाए आंख से ओझल महावर और मेंहदी,

लौट आओ, सतरंगी श्रृंगार की सौगंध तुम को

अनमना दर्पण निर्मंत्रण दे रहा है।


कौन-सा मन हो चला गमगीन जिससे सिसकियां भरतीं दिशाएं

आंसुओं का गीत गाना चाहती हैं नीर से बोझिल घटाएं

लो घिरे बादल, लगी झडि़यां, मचलतीं बिजलियां भी,

लौट आओ हारती मनुहार की सौगंध तुमको

भीगता आंगन निमंत्रण दे रहा है।

यह अकेला मन निमंत्रण दे रहा है।

8 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अभिषेक भाई, बधाई।

अगर बुरा न मानें तो एक सवाल पूछूंगा। पहले वाले फोटो में आपके साथ जो हैं, उनका नाम क्‍या है?
---------
ध्‍यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्‍दर्य को निरखने का अवसर।

Vineeta Yashsavi said...

Very lovable post...

poem is also very nice and enhancing your feeling very much...

अभिषेक मिश्र said...

जाकिर जी, बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि उस तस्वीर में वो सौभाग्यशाली युवक मैं तो नहीं ही हूँ, अब साथ वाले को पहचानने में तो मेरी स्थिति समझ ही सकते हैं. :-)

यह तस्वीर तो मेरी 'Art of Photography' की एक झलक मात्र है, जिन्हें मैं अपनी विजीट की जा रही जगहों से बिना किसी को डिस्टर्ब किये उठा लेता हूँ.

मैं आप लोगों को अपने साथ प्रेम सफर पर ले तो जरुर जा रहा हूँ, मगर राह भटकाने की भी पूरी गुंजाइश है, क्योंकि इस राह पर मैं सिर्फ थिओरेटिकल गाईड ही हूँ और यह सफर मेरे लिए भी नया ही है.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

इतिहास में झांकने के साथ साथ आद.सोम ठाकुर जी का गीत पढ़वाने के लिए शुक्रिया
Sundar post!

राज भाटिय़ा said...

आज कल सच मे भारत मे बहुत प्यार मिलने लगा हे, कल दिल्ली मे तीनो बेटो ने प्यार मे आ कर अपनी अंधी मां को घर से निकाल दिया जो ८० बर्ष की थी, एक बेटे ने शराब ओर ताश के लिये पेसे ना देने पर मां को प्यार मे मार मार कर जान से खत्म कर दिया, तीसरे ने मां ओर बाप को प्यार मे जला ही दिया, चोथे ने बाप के पैसो को किराये के गिउंडो से लूट लिया..... सच मे कितना प्यार हे, अब उन नोजवानो की बात करे, जो अपनॊ प्रेमिका की इज्जत अपने दोस्तो के संग लूटते हे, या शादी के दो साल बाद ही तलाक लेते हे प्यार से अजी कोन से प्यार की बात कर रहे हे आप.... जिसे कोई जानता नही कि प्यार कहते किसे हे... सुंदर सुरत देखी ओर लट्टू हो गये... छोडो भाई इस प्रेम के सफ़र को...
ओर लिजिये हमारी तरफ़ से एक बहुत मोटी सी बधाई आप की इस शतकिया पोस्ट के लिये, ओर जल्द ही दुसरा शतक भी लगाये, धन्यवाद

अभिषेक मिश्र said...

राज जी, निश्चित रूप आकर्षण को ही आज प्यार समझ लिया जा रहा है, मगर यह मनुष्य को ईश्वर की एक विशेष देन तो है ही. प्रेम के कुछ विशिष्ट उदाहरणों को ही याद करते हुए प्रयास करूंगा प्यार की
सही परिभाषा की तलाश की भी.

Patali-The-Village said...

सोम ठाकुर जी का गीत पढ़वाने के लिए शुक्रिया|
शतकिया पोस्ट के लिये बधाई|

Arvind Mishra said...

इतिहास और कविता की यह प्रेमिल परिणय परिणति अच्छी लगी...सौंवी पोस्ट पर बधाई !

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