वर्ष 2011 समाप्त होने को ही है. यूँ तो है ये एक आंकड़ा ही, मगर कुछ छोटी-बड़ी घटनाओं को गूंथता ये कालखंड यादों का एक संकलन छोड़ ही जाता है, और जिसका पुनरावलोकन तो एक परंपरा है ही. आखिर इन्ही अनुभवों पर पिछला कदम रखकर ही तो रखेंगे नए वर्ष में अगला कदम.
पिछले दिनों टूर आदि की व्यस्तताओं में उलझा ब्लौगिंग से अपेक्षया दूर ही रहा. आज फिर एक संछिप्त टूर पर निकल रहा हूँ, जो संभवतः रोचक ही रहेगा; विस्तृत विवरण तो दूंगा ही.
नेटवर्क ज़ोन से लगभग अज्ञातवास सदृश्य अरुणाचल प्रवास से दिसंबर, 2010 तो बाहर ले ही आया था, 2011 में केंद्र के निकट रहने का भरपूर लाभ भी उठाया.
वर्ष के शुरुआत में ही पुस्तक मेला से साल भर का कोटा तो जमा कर ही लिया था, जिसमें संमय के साथ इजाफा ही होता रहा. कुछ अच्छे उपन्यास, विज्ञान गल्प संग्रह, कहानी संग्रह आदि पढ़े - जिनमें आर. के. नारायण की 'महात्मा का इंतजार', डोमीनिक लोपियर की 'आधी रात की आजादी', हिमांशु जोशी की 'तुम्हारे लिए' इत्यादि महत्वपूर्ण रहीं.
पारंपरिक लेखन की दृष्टि से 'विज्ञान प्रगति' और 'राजभाषा पत्रिका' में रचनायें छपीं, मगर इसे पूर्णतः संतोषजनक नहीं मान सकता. इसमें कुछ भूमिका फेसबुक और ब्लौगिंग की भी रही. अज्ञातवास के बाद से नेटवर्क की प्यास थी ही इतनी बड़ी .....
हां, मेरे ब्लॉग से कुछ आर्टिकल्स 'हिंदुस्तान' आदि समाचारपत्रों में जरुर प्रकाशित हुए.
इस वर्ष को एक और मायने में याद रखूँगा अपने भ्रमण के लिए. शौकिया और औफिसियली दोनों मायनों में जमकर घुमने का मौका मिला. नैनीताल, मसूरी, हरिद्वार, हृषिकेश, आगरा, जयपुर, अमृतसर, चंडीगढ़ के अलावे उत्तराखंड और हिमाचल के कई सुदूरवर्ती स्थलों में भी जाने का मौका मिलता रहा. साल के अंत-अंत में अपनी विशेष रूचि के एस्ट्रोनौमिकल महत्व के एक स्थल से ' विंटर सोल्स्ताईस ' के नज़ारे का भी लुत्फ़ लिया. कुछ और स्थानीय मगर ऐतिहासिक महत्व के स्थलों का भी भ्रमण किया.
दिल्ली में कुछ नए ठिकाने भी बने जिनमें मंडी हाउस, इन्डियन हैबिटैट सेंटर और इंदिरा गाँधी कला केंद्र आदि प्रमुख हैं जहाँ कला और संस्कृति जगत के कई स्वरूपों से साक्षात्कार भी हुए.....
नई जगह, नए माहौल में कुछ नए लोगों से दोस्ती हुई और कुछ नए लोगों से 'दोस्ती' के प्रयास फलीभूत नहीं भी हो पाए... खैर " जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए..." . फेसबुक और ब्लॉग के माध्यम से जहाँ पुराने परिचितों से टूटा संपर्क बहाल हुआ वहीँ रचनाकर्म से जुड़े कुछ नए और यादगार संपर्क भी कायम हुए. जैसे चंडीदत्त शुक्ल, मनोज कुमार जी आदि.
अपनी एक और विशेष रूचि फिल्मों में इस साल 'बोल' और टैगोर की 150 वीं जयंती के उपलक्ष्य में देखी 'काबुलीवाला' को उल्लेखनीय मानूंगा. बौलीवुड ने अमूमन निराश ही किया. वैसे जोया अख्तर जैसे कुछ नए फिल्मकारों ने उम्मीदें बरक़रार रखी हैं.....
जहाँ इस वर्ष ने कई महत्वपूर्ण यादें दीं, वहीँ कुछ अति दुखद प्रसंग भी आये. कला एवं रचना जगत की महत्वपूर्ण हस्तियाँ हमसे छीन ले गया 2011 ... (आशा है अगले वर्ष इसे कम्पेंसेट करने की भी कोशिश करेगा उनके विपरीत लोगों को अपने साथ ले जाकर.....). इनमें जो सबसे महत्वपूर्ण हैं वो हैं देव आनंद और जगजीत सिंह का हमारे बीच से चले जाना... इन दोनों से मैं काफी भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था. देवसाहब पर विस्तृत पोस्ट जल्द ही.....
कहने को अभी भी काफी कुछ है, मगर ' क्या भूलूं क्या याद करूँ...'
आनेवाले वर्ष में अपने लेखन पर कुछ और ध्यान देने पर जोर दूंगा. आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.....