Thursday, February 10, 2011

"वाईफ नहीं; लाईफ पार्टनर" (प्रेम श्रृंखला 3)

सोफिया - नाथानियेल हौथोर्न











अंग्रेजी साहित्य में नाथानियेल हौथोर्न एक प्रतिष्ठित नाम है. 4 जुलाई, 1804 को मैसाचुसेट्स में जन्मे हौथोर्न  में लेखन प्रतिभा की झलक बाल्यकाल से ही दिखने लगी थी, जो समय के साथ परवान चढती गई. जुलाई 1842 में, 38 वर्ष की आयु में उनका विवाह 32 वर्षीय सोफिया से हुआ; मगर उस युग की मान्यताओं के विपरीत उम्र उनके संबंधों की मधुरता के आड़े कभी नहीं आई. प्रसिद्ध  प्रेम पत्रों की श्रृंखला में शामिल पत्रों में एक - हौथोर्न द्वारा शादी की पहली सालगिरह पर लिखे पत्र - में लिखा कि - 

"We were never so happy as now—never such wide capacity for happiness, yet overflowing with all that the day and every moment brings to us. Methinks this birth-day of our married life is like a cape, which we have now doubled and find a more infinite ocean of love stretching out before us."

1846 में कस्टम विभाग में नौकरी करते हुए हौथोर्न अपनी लेखनी की निरंतरता में बाधाओं और अनियमितता से निराश से थे. उन्होंने अपनी मनःस्थिति स्पष्ट करते हुए एक बार लिखा था - 

I am trying to resume my pen... Whenever I sit alone, or walk alone, I find myself dreaming about stories, as of old; but these forenoons in the Custom House undo all that the afternoons and evenings have done. I should be happier if I could write. "

राजनीतिक तथा प्रशासनिक  परिवर्तन तथा कुछ पारिवारिक परिस्थितिवश 1848 में उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. 

इन परिस्थितियों में सोफिया उनके जीवन की वास्तविक साझदार बनकर उभरीं. उन्होंने हौथोर्न को हताशा और असफलता के दौर से बाहर निकल धैर्यपूर्वक संघर्ष करने को प्रेरित किया. हौथोर्न की स्वाभाविक प्रतिभा 
लेखन की ओर प्रेरित करते हुए उन्होंने उन्हें पुनः रचंनाशिलता की ओर उन्मुख होने का सुझाव दिया. मगर पूर्णतः लेखन को समर्पित होते हुए हौथोर्न को पारिवारिक जिम्म्मेदारियों का भाव भी रोक रहा था. सोफिया के  पास इसका भी समाधान था. हौथोर्न पर अपने आत्मिक  विश्वास औरभरोसे का परिचय देते हुए उन्होंने आश्वस्त किया कि वो जानती थीं कि अपनी बुद्धिमता के फलस्वरूप वे एक दिन साहित्य रचना से अवश्य ही जुडेंगे. अपनी बचत से वो एक साल तक घर की जिम्मेदारी आसानी से उठा सकती हैं. 

पति के अपने प्रति प्रेम, आत्मविश्वास तथा समर्पण ने हौथोर्न को एक बार फिर लेखन से और भी दृढता से जुडने को प्रेरित किया, और परिणामस्वरूप लगभग एक वर्ष की अवधि में ही मध्य मार्च, 1850 तक विक्टोरिया युग की एक प्रमुखतम रचना 'द स्कारलेट लेटर' (The Scarlet Letter) प्रकाशित हुई. 

नैथानियेल की लेखन शैली मुख्यतः रोमांटिक साहित्य थी. उनकी प्रमुख रचनाओं में -  The Scarlet Letter (1850), The House of the Seven Gables (1851), The Blithedale Romance (1852) तथा  The Marble Faun (1860) आदि प्रमुख हैं. 

मगर उनके साहित्यिक सफर में उनकी पत्नी सोफिया की भूमिका, प्रेरणा और योगदान को कभी नहीं भुलाया 
जा सकता. अन्यथा आपसी मतभिन्नता, ग़लतफ़हमी और परस्पर भावनाओं की साझेदारी में हिचकिचाहट तो साधारणतः रिश्तों को साल-दर-साल सिर्फ निभा लेने भर को ही संबंधों की सफलता मानती है. 

शायद यही होता है सच्चा प्रेम जो एक-दूसरे को समझने, सम्मान और आदर देने से ही परिपक्व होता है.  

चलते-चलते प्रेम गीतों विशेषकर गजलों को अपनी मखमली आवाज से असीम गहराई देने वाले तलत महमूद साहब (जिनका कि आगामी 24 फरवरी को जन्मदिन भी है) की दिलकश आवाज में एक गीत :

                                                              

"हमसे आया ना गया, तुमसे बुलाया ना गया;
 फासला प्यार में , दोनों से मिटाया ना गया....."

5 comments:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

bahut sundar..

Vineeta Yashsavi said...

humse aaya na gaya tumse bulaya na gaya... sometimes lines really suits on ur personality...

राज भाटिय़ा said...

लेख तोहम ने पढा नही लेकिन इस गीत को कई बार सुना...लेकिन मन नही भरा, बहुत सुंदर गीत, धन्यवाद इस सुंदर गीत के लिये, अब लेख भी पढते हे

वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर said...

बहुत अच्ची एवं मूल्यवान् जानकारी दी...............धन्यवाअद।

मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

ZEAL said...

मेरा पसंदीदा गीत है ये । सुनवाने के लिए आभार।

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