नैनीताल, एक स्वप्निल शहर. प्रकृति की अनमोल विरासत का एक जिवंत दस्तावेज. जाने कब से यहाँ आने के सपने संजो रहा था, मगर किसी न किसी कारण से कार्यक्रम टल ही जा रहा था. और अब जब जाना हुआ भी तो जैसे इम्तहान की घड़ियाँ खत्म होने का नाम ही न ले रही हों. मेरे सारे धैर्य की परीक्षा इसी भ्रमण में ले लेनी हो जैसे. सोमवार की छुट्टियों का उपयोग करने के उद्देश्य से कुछ बैचमेट्स के साथ नैनीताल जाने का कार्यक्रम बना. दोपहर तीन बजे से आरंभ हुआ सफर रात के एक बजे तक मात्र हाइवे तक पहुँच पाने में ही सिमटा रहा. महानगरों की ट्रैफिक व्यवस्था के दबाव की स्थिति में बिखरने का यह एक भयावह उदाहरण था.
सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात तक...
खैर रात के नौ की बजाये सुबह के आठ बजे हम हल्द्वानी पहुंचे और थोड़े विश्राम के बाद नैनीताल के लिए रवाना हो गए. थोड़ी ही देर में हमलोग यहाँ की प्रसिद्ध नैनी झील पहुँच गए. पौराणिक मान्यता के अनुसार यह झील सती की बायीं आँख के गिरने से निर्मित हुई है. इसके पार्श्व में ही श्रद्धा व आस्था का केन्द्र माँ नैना देवी का मंदिर भी है. अपनी पसंदीदा लेखिका शिवानी की कई कहानियों में वर्णित यह स्थल, यहाँ के मंदिर और मन्नत के प्रतीक घंटियों तथा चुनरियों को प्रत्यक्ष देखना एक अविस्मरणीय अनुभव था.
मुख्य नैनीताल इसी झील के आस-पास का ही भाग है. जहाँ माल रोड, तिब्बत मार्केट आदि स्थित हैं. मगर यही असली नैनीताल नहीं है. यह तो मात्र एक एड है टूरिस्ट्स के लिए. जो नैनीताल घूमने आते हैं, समझने आते हैं और अपनी यादों में संजोने आते हैं उनके लिए तो असली नैनीताल इस भीड़-भाड़ से परे है. यहाँ आये हों, तो यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को निहारें, पुरानी इमारतों की विशिष्ट बनावट और साज-सज्जा पर गौर करें, ब्रिटिश और भारतीय पर्वतीय परंपराओं के संजोग से विकसित एक नई संरचना को महसूस करें. और निश्चित रूप से यह आप या तो अकेले कर सकते हैं या चंद ऐसे ही समानमना मित्रों के समूह के साथ.
मेरा दृढ रूप से मानना है कि इन पहाड़ी स्थलों का वास्तविक आनंद टूरिस्ट बनकर सिर्फ़ नौका विहार और मॉल में मार्केटिंग करने से ही नहीं उठाया जा सकता. पहाड़ों के साथ एक आत्मीयता विकसित कर ही हम इनका वास्तविक आनंद प्राप्त कर सकते हैं. पर्यटकों की भीड़-भाड़ और उसमें खो सी गई स्थानीय आबादी और उसकी विशिष्ट संस्कृति को देख मुझे वाकई महसूस हुआ कि पर्यटन के नाम पर हम इन राज्यों के स्वाभाविक स्वरुप को विकृत तो नहीं कर रहे. अच्छा हो हम इन्हें अपनी सुविधा से मोडिफाईड करने का मोह त्याग कर इन्हें इनके स्वाभाविक रूप में ही स्वीकार करें.
और अगर अगली बार कभी नैनीताल जायें तो इन स्थानों को देखने का भी प्रयास अवश्य करें –
और चलते -चलते आपको छोड़े जाता हूँ एक खुबसूरत गीत के साथ जिसे नैनीताल में ही फिल्माया गया है -
संजोग से आज आशा भोंसले जी का जन्मदिन भी है, शुभकामनाएं.
15 comments:
Heritages makes a place special,and God adds scenic beauty to enrich its grandeur.Really, Nainital is spectacular.
I was also there in Nainital during September 2007 and July 2010..Being there I felt that I was touching heart of "Mother Earth".
बहुत सुन्दर वर्णन ....मैं भी कुछ दिन पहले गई थी और इस सुन्दर शहर का भरपूर आनंद उठाया था
अरे तल्लीताल और मल्लीताल कहाँ छोड़ दिए ..बाकी तो सहमत और नयनाभिराम दृश्य से आप्लावित
जिवंत=जीवंत
@ Shilpi,
Agree with your views.
@ सुरेश
तुम्हारी तसवीरें और ख़ुशी मुझे याद है. :-)
@ रेखा जी,
आपकी कुछ यादें ताजा हो पाईं, अच्छा लगा . :-)
@ अरविन्द जी, जैसा कि मैंने पोस्ट में इशारा किया है, समान रुची के मित्रों का साथ न हो पाने की वजह से यह ट्रिप अधूरी ही मानी जाएगी. नैनीताल की असली visit अभी शेष है. :-)
आप ने नैनिताल का इतना सुंदर वर्णन किया है की मेरे पास कोई शब्द नहीं है| मैं कभी भी नैनीताल नहीं गया, लेकिन अब इसकी खूबसूरत प्रस्तुति के बाद मैं वहाँ निश्चित रूप से जउउगा| इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद|
आप ने नैनिताल का इतना सुंदर वर्णन किया है की मेरे पास कोई शब्द नहीं है| मैं कभी भी नैनीताल नहीं गया, लेकिन अब इसकी खूबसूरत प्रस्तुति के बाद मैं वहाँ निश्चित रूप से जउउगा| इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद|
आपकी पोस्ट और चित्रों के माध्यम से घूम आया नैनीताल।
कभी जाना न हुआ है।
@ अनूप
दिसंबर में चले जाना नैनीताल, नए हमसफ़र के साथ. :-)
@ मनोज जी,
नैनीताल की आपको झलक दिखा सका, पोस्ट सफल हुई. :-)
आपके चित्र बड़े मनमोहक हैं. पर्यटन स्थलों में पर्यटन आधारित अर्थ व्यवस्था विकसित हो जाती है और स्थानीय स्वरुप बदल जाता है. नैनीताल के बारे में विनीता यशस्वी जी खूब लिखा करती थीं.
बहुत सुंदर लिखा आपने.एक जिज्ञासा जगा दी..कभी जाना तो नहीं हुआ। कभी अवसर मिला तो अवश्य जाऊँगी।
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