Saturday, September 24, 2011

भीड़ से हटकर कुछ बदला हुआ सा 'मौसम' (एक फिल्म समीक्षा)


वर्षों पहले दूरदर्शन के दौर में एक बेहतरीन सीरियल आता था - 'फटीचर'; जिसके मुख्य कलाकार पंकज कपूर का एक प्रसिद्द डायलौग था- ' फटीचर, तूँ इतना इमोशनल क्यों है यार ! " बहुचर्चित फिल्म 'मौसम' को देखकर अच्छा लगा कि वो पंकज कपूर आज भी उतने ही इमोशनल हैं. मौसम जो कि उनकी ड्रीम प्रोजेक्ट थी, वाकई एक सपने के जैसी ही खूबसूरत फिल्म है. या यूँ कहें कि यह एक दिल को छु लेने वाली कविता है, जिसे किसी संवेदनशीलता के साथ ही महसूस किया जा सकता है. हाँ कहीं - कहीं यह फिल्म स्क्रिप्ट में थोड़ी और कसावट की मांग भी करती है, और क्लाइमेक्स में शाहीद कपूर में जबरन हिरोइज्म के तत्व प्रकट कर हिंदी फिल्मों के हीरो के भाव विकसित करने का मोह भी छोड़ा जा सकता था. खैर पहली फिल्म और बौलीवुडीय ट्रेंड का दबाव भी तो कुछ अर्थ रखता ही है. 



फिल्म न सिर्फ़ एक भावनापूर्ण प्रेम कहानी है, बल्कि पिछले बीस वर्षों का एक दस्तावेज भी है. 1992 के  'बाबरी मस्जिद कांड' से लेकर 'गोधरा कांड' तक की घटनाओं जिनमें कारगिल युद्ध और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हादसे भी शामिल है के एक मासूम प्रेमी युगल पर प्रभाव को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास करती है यह फिल्म. कश्मीर में आतंकवाद के दौर में वहाँ से पंजाब आ गई मुस्लिम युवती आयत और पंजाब के हरिन्दर उर्फ हैरी का मासूम प्रेम इस फिल्म की बुनियाद है जो अपनी परिणति को पहुँचने के लिए कई विषमताओं से गुजरता है. निर्देशक की सक्षमता के कारण दोनों की ही मासूम प्रेम कहानी शुरू से ही दर्शकों को अपने साथ जोड़ लेती है, जो इनके सम्मोहन में कहीं खो से ही जाते हैं. मगर आज  20-20 के दौर में दर्शकों के भी धैर्य की एक सीमा है. निर्देशक ने हरेक शौट काफी खूबसूरती से लिया है, और हर सीन में पंकज कपूर का टच महसूस होता है, मगर यही शायद उनकी कमजोरी भी बन गई जो एडिटिंग के आड़े आकर फिल्म को अनावश्यक थोड़ी लंबी बना गई. 

 "जरा सी मेंहदी लगा दो,
जो रंग न चढ़ा तो --- तो एक नजर देख लेना ..."

इंटरवल से पहले फिल्म बस एक जादुई सम्मोहन सा ही अहसास देती है. इंटरवल के बाद भी किसी खूबसूरत कविता सा एहसास होता है, जब फिल्म स्कौटलैंड से गुजर रही होती है. मगर कारगिल युद्ध, गोधरा जैसी चीजें कहानी को कहीं भटकती सी लगती हैं और दर्शकों को उकताती भी. मगर साथ ही दर्शकों को सचेत भी करती है ये फिल्म उन " भयानक सायों के प्रति, जिनके न चेहरे होते हैं न नाम....."

"कि दिल अभी भरा नहीं..."

मगर फिर भी पंकज कपूर के कुशल निर्देशन में शाहीद और सोनम ने सराहनीय अभिनय किया है, और दोनों ने ही अपनी सादगी से प्रभावित किया है.  कुछ अच्छे गानों के साथ हमदोनो' की - " कि दिल अभी भरा नहीं..." गुनगुनाना आकर्षित करता है. 


फूहड़ कॉमेडी और अतिनाटकीय एक्शन से भरी फिल्मों के इस दौर में एक रिमझिम सी फुहार है मौसम.....



12 comments:

SANDEEP PANWAR said...

एक शानदार फ़िल्म

Rahul Singh said...

हमने याद कर लिया संजीव शर्मिला और गुलजार वाली मौसम को.

नीरज मुसाफ़िर said...

फिल्मों की दुनिया में क्या हो रहा है, अपन तो दूर से ही रामराम कर लेते हैं।
बढिया जानकारी

Manish Kumar said...

hmmm kuch gaanon ke trailor bhar dekhein hain badi khoobsurti se filmaye gaye hain.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

फिल्में इन वर्षों में चैनलों पर आधी अधूरी ही देखते हैं
नई मौसम भी अब तक तो देखी नहीं … अब देखेंगे आपकी समीक्षा के बाद !

हां , संजीवकुमार , शर्मिला टैगोर और गुलजार वाली मौसम तीन-चार बार देखी थी … बेहतरीन फिल्म थी …

ब्लॉग पर विविध सामग्री देख-पढ़ कर अच्छा लगा ।

shilpy pandey said...

Hopefully I m going to watch it next monday...thanks review dene ke liye...ab jakar dekh sakte hain hum bhi ..kyoki bahut kam aur selected movies hi dekhte hain hum :)

मनोज कुमार said...

फ़िल्म आपने रिकोमेंड किया है तो देखना ही पड़ेगा।

मनोज कुमार said...

फ़िल्म आपने रिकोमेंड किया है तो देखना ही पड़ेगा।

रचना दीक्षित said...

बहुत सुंदर समीक्षा. लगता है देखनी पड़ेगी अगर मौका लगा तो.

Jyoti Mishra said...

looking forward to watching it.

Arvind Mishra said...

ऐसी कृतियाँ मनुष्यता को परिभाषित करते चलती हैं -देखता हूँ !

चण्डीदत्त शुक्ल-8824696345 said...

मौसम is awesome movie... इश्क का आब, नफ़रत की आग, मोहब्बत का सैलाब...। बहुत दिनों के बाद कोई फ़िल्म, जो सुकून देती है...हौले-हौले, रफ्ता-रफ्ता चलती हुई, महबूब की तरह आंखों के ज़रिए जैसे दिल में उतर जाए, एक कविता, जंगल की अनगढ़ पगडंडी पर शाम ढले बैठे हुए, बांसुरी की धुन की मानिंद... शुक्रिया और मुबारक हो पंकज-शाहिद-सोनम...थ्री कपूर्स और हां...आपकी समीक्षा भी शानदार है...फिल्म की तरह ही।

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